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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
दिये हैं जो अमोघा वृत्ति में ही उपलब्ध होते हैं। इसी प्रकार यक्षवर्मा विरचित चिन्तामणिवृत्ति के प्रारम्भ के ६ ठे और ७ वें श्लोक की परस्पर संगति लगाने से स्पष्ट होता है कि अमोघा वृत्ति सूत्रकार
ने स्वयं रची है। सर्वानन्द ने अमरटीकासर्वस्व में अमोघा वृत्ति का ५ पाठ पाल्यकीर्ति के नाम से उद्धृत किया है ।
'जैन साहित्य और इतिहास' के लेखक श्री नाथूरामजी प्रेमी ने अमोघा वृत्ति का स्वोपज्ञत्व बड़े प्रपञ्च (विस्तार) से सिद्ध किया है।
अमोघा वृत्ति सं० २०२८ में 'भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन काशी' १० से प्रकाशित हुई है । पर खेद का विषय है कि जैनेन्द्रमहावृत्ति के
समान इसका सम्पादन भी प्रकाशन संस्था के महत्त्व के अनुरूप नहीं हो पाया। इसका प्रधान कारण यही है कि दोनों वृत्तियों के सम्पादकों का जैनेन्द्र और शाकटायन व्याकरण विषयक आधिकारिक ज्ञान नहीं था ।
अमोघा वृत्ति का टीकाकार-प्रभाचन्द्र प्राचार्य प्रभाचन्द्र ने अमोघा वृत्ति पर 'न्यास' नाम्नी टीका रची है। एक प्रभाचन्द्र आचार्य का वर्णन हम पूर्व जैनेन्द्र व्याकरण के प्रकरण में कर चुके हैं। उन्होंने जैनेन्द्र व्याकरण पर 'शब्दाम्भोज
१. शाकटायनस्तु कर्णेटिरिटिरिः कर्णेचुरुचुरुरित्याह । गणरत्नमहोदधि पृष्ठ २० ८२, अमोघा वृत्ति २ । १ । ५७ ॥ शाकटायनस्तु अद्य पञ्चमी अद्य द्वितीयेत्याह । गण० पृष्ठ ६०, अमोघा २ । १ । ७६ ॥
२. इष्टिर्नेष्टा न वक्तव्यं वक्तव्यं सूत्रतः पृथक् । संख्यातं नोपसंख्यानं यस्य शब्दानुशासने ॥ ६ ॥ तस्यातिमहतीं वृत्ति संहृत्येयं लघीयसी।... ॥ ७ ॥
यस्य पाल्यकीर्तेः शब्दानुशासने इष्टयादयो नैवापेक्षन्ते तस्य पाल्यकीर्तेः महती २५ वत्ति संक्षिप्येयं लघ्वी वृत्तिविधीयते इति संगतिः॥
३. तयाहि तत्र पाल्यकीविवरणं पोटगलो बृहत्कोशः । भाग ४, पृष्ठ ७२।
. ४. द्वि० सं० पृष्ठ १६१-१६५ । ५. शब्दानां शासनाख्यस्य शास्त्रस्यान्वर्थनामतः। प्रसिद्धस्य महामोघवत्तेरपि विशेषतः॥ सूत्राणां च विवृतिविख्याते च यथामति । ग्रन्थस्यास्य च ___ न्यासेति क्रियते नाम नामतः॥ जैन साहित्य और इतिहास, द्वि० सं० पृष्ठ १६० पर उद्धृत।
६. द्र०- पूर्व पृष्ठ ६६५-६६६ ।