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आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६७६ प्रक्रियानुसारी बना दिया गया। उससे पाणिनीय व्याकरण अत्यन्त दुरूह हो गया। ___ इस व्याकरण के सूत्र पाठ में आर्यवज्र (१ । २ । १३) सिद्धनन्दी (२।१।२२६) और इन्द्र (१।२।३७) नामक प्राचीन आचार्यों का उल्लेख है। अमोघावृत्ति में प्रापिशलि काशकृत्स्नि ५ (३।१ । १६६) पाणिनि वैयाघ्रपद्य (३।२ । १६१) आदि का उल्लेख भी मिलता है।
अन्य ग्रन्थ १-धातुपाठ, २-उणादिसूत्र, ३-गणपाठ, ४-लिङ्गानुशासन, ५- परिभाषापाठ का निर्देश अगले अध्यायों में यथास्थान करेंगे। १०
६-उपसर्गार्थ, ७-तद्धित संग्रह इन ग्रन्थों का निर्देश राबर्ट विरवे ने शाकटायन व्याकरण की भूमिका (सन्दर्भ ५४) में किया है।
८-साहित्य विषयक-राजशेखर ने काव्यमीमांसा में पाल्यकीति का एक उद्धरण दिया है
'यथाकथा वा वस्तुनो रूपं वक्तृप्रकृतिविशेषात्तु रसवत्ता। तथा १५ च यमर्थ रक्तः स्तौति तं विरक्तो विनिन्दति मध्यस्थस्तु तत्रोदास्त इति पाल्यकोतिः।
इस से स्पष्ट है कि पाल्यकोति ने कोई साहित्य विषयक ग्रन्थ भी रचा था।
8-स्त्री-मुक्ति, १०-केलिभक्ति-ये ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं । इनसे २० विदित होता है कि पाल्यकीति बड़े तार्किक और सिद्धान्तज्ञ थे। .. शाकटायन व्याकरण के व्याख्याता
१-पाल्यकोति प्राचार्य पाल्यकीर्ति ने स्वयं अपने शब्दानुशासन की वृत्ति रची है। यह पाल्यकीति के आश्रयदाता महाराज अमोघदेव के नाम पर २५ 'अमोघा' नाम से प्रसिद्ध है । अमोघा वृत्ति अत्यन्त विस्तृत है। इसका परिमाण लगभग १८००० सहस्र श्लोक है। गणरत्नमहोदधि के रचयिता वर्धमान सूरि ने शाकटायन के नाम से अनेक ऐसे उद्धरण