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________________ ६७० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास त्रिभुवनतिलक नामक जैनमन्दिर में शकाब्द ११२७. (वि. सं. १२६२) में इस टीका को पूर्ण किया।' शब्दार्णवप्रक्रियाकार ... किसी अज्ञातनामा पण्डित ने शब्दार्णवचन्द्रिका के आधार पर ५ शब्दार्णवप्रक्रिया ग्रन्थ लिखा है । इस प्रक्रिया के प्रकाशक महोदय ने ग्रन्थ का नाम जैनेन्द्रप्रक्रिया और ग्रन्थकार का नाम गुणनन्दी लिखा है, ये दोनों अशुद्ध हैं । प्रतीत होता है,ग्रन्थ के अन्त में 'सैषा गुणनन्दितानितवपुः श्लोकांश देखकर प्रकाशक ने गुणनन्दी नाम की कल्पना की है। ५-वामन (सं० ३५० वा ६०० से पूर्व) । वामन ने 'विधान्तविद्याधर' नाम का व्याकरण रचा था। इस व्याकरण का उल्लेख आचार्य हेमचन्द्र और वर्धमान सूरि ने अपने ग्रन्थों में किया है । वर्षमान ने गणरत्नमहोदधि में इस व्याकरण के १५ अनेक सूत्र उद्धृत किये हैं, और वामन को 'सहृश्यचक्रवर्ती' उपाधि से विभूषित किया है।' संस्कृत वाङ् मय में वामन नाम के अनेक ग्रन्थकार हुए हैं । अतः - नाम के अनुरोध से कालनिर्णय करना अत्यन्त कठिन कार्य है । पुनरपि २० काशकुशावलम्ब न्याय से हम इसके कालनिर्णय का प्रयत्न करते हैं १. विक्रम की १२ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विद्यमान प्राचार्य हेमचन्द्र ने हैमशब्दानुशासन की स्वोपज्ञटीका में विश्रान्त विद्याधर का का उल्लेख किया है। ... १. स्वस्ति श्रीकोल्हापुरदेशांतवंत्यार्जु रिकामहास्थान...... • त्रिभुवन२५ तिलकजिनालये ....... श्रीमच्छिलाहारकृलकमलमार्तण्ड ...... श्रीवीरभोज देवविजयराज्ये शकवकसहस सप्तशिति (११२७) तमक्रोधनवत्सरे ........ सोमदेवमुनीश्वरेण विरचितेयं शब्दार्णवचन्द्रिका नामवृत्तिरिति । ..२. सहृदयचक्रवत्तिना वामनेन तु हेम्नः इति सूत्रेण"..। पृष्ठ १६८ । .. ३. द्र०-आगे हेमचन्द्र के प्रकरण में।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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