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________________ आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ८७१-६२४ तक है । अतः शब्दार्णव की रचना उस के अनन्तर काल की है। __ श्रवणवेल्गोल के ४२, ४३ और ४७ वें शिलालेख में किसी गुणनन्दी प्राचार्य का उल्लेख मिलता है। ये बलाकपिच्छ के शिष्य और गध्रपिच्छ के प्रशिष्य थे। इन्हें न्यास, व्याकरण और साहित्य का ५ महाविद्वान् लिखा है। अतः सम्भव है ये ही शब्दार्णव व्याकरण के सम्पादक हों। कर्नाटककविचरित के कर्ता ने गणनन्दी के प्रशिष्य और देवेन्द्र के शिष्य पम्प का जन्मकाल सं० ६५६ लिखा है । अतः गुणनन्दी का काल विक्रम की दशम शताब्दी का उत्तरार्ध है। ___ चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य के कर्ता वीरनन्दी का काल शक सं० १० ६०० (वि० सं०. १०३५) के लगभग है। वीरनन्दी गुणनन्दी की शिष्य परम्परा में तृतीय पीढ़ी मैं है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं।' प्रति पीढ़ी न्यूनातिन्यून २५ वर्ष का अन्तर मानकर गुणेनन्दी का काल सं० ६६० के लगभग सिद्ध होता है । अतः स्थूलतया गुणनन्दी का . काल सं० ६१०-९६० तक मानना अनुचित न होगा। ... १५ शब्दार्णव का व्याख्याता-सोमदेव सूरि (सं० ११६२) , सोमदेव सूरि ने शब्दार्णव व्याकरण की 'चन्द्रिका' नाम्नी अल्पाक्षर वृत्ति रची है । यह वृत्ति काशी की सनातन जैन ग्रन्थमाला में प्रकाशित हो चुकी है। ' शब्दार्णवचन्द्रिका के प्रारम्भ के द्वितीय श्लोक से विदित होता है २० कि सोमदेवसूरि ने यह वृत्ति मूलसंघीय मेघचन्द्र के शिष्य नागचन्द्र (भुजङ्गसुधारक) और उनके शिष्य हरिश्चन्द्र यति' के लिये बनाई . काल-शब्दार्णवचन्द्रिका की मुद्रित प्रति के अन्त में जो प्रशस्ति छपी है उन से ज्ञात होता है कि सोमदेव सूरि ने शिलाहार वंशज २० भोजदेव (द्वितीय) के राज्यकाल में कोल्हापुर के 'अर्जरिका' ग्राम के १. तच्छिष्यो गुणनन्दिपण्डितयतिश्चारित्रचक्रेश्वरः, तर्कव्याकरणादिशास्त्रनिपुणः साहित्यविद्यापतिः। २. पूर्व पृष्ठ ६६४ । ३. श्रीमूलसंघजलप्रतिबोधमानोमेघेन्दुदीक्षितभुजङ्गसुधाकरस्य । राद्धान्ततोयनिधिवृद्धिकरस्य वृत्ति रेभे हरीन्दुयतये वरदीक्षिताय ॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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