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________________ आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६७१ २. इसी काल का वर्धमान सूरि गणरत्नमहोदधि में लिखता है दिग्वस्त्रभर्तृहरिवामनभोजमुख्या......"वामनो विधान्तविद्याघरव्याकरणकर्ता।' ३. प्रभावकचरितान्तर्गत मल्लवादी प्रबन्ध में लिखा हैशब्दशास्त्रे च विश्रान्तविद्याधरवराभिधे। .. न्यासं चक्रेऽल्पधीवृन्दबोधनाय स्फुटार्थकम् ॥ . . इस से स्पष्ट है कि मल्लवादी ने वामनप्रोक्त विश्रान्तविद्याधर व्याकरण पर 'न्यास' लिखा था। आचार्य हेमचन्द्र ने भी हैम व्याकरण की स्वोपज्ञ टीका में इस न्यास को उद्धृत किया है। इस प्रमाण के अनुसार वामन का काल निश्चय करने के लिये १० मल्लवादी का काल जानना आवश्यक है। अतः प्रथम मल्लवादी के काल का निर्णय करते हैं मल्लवादी का काल-आचार्य मल्लवादी का काल भी अनिश्चित है। अत: हम यहां उन सव प्रमाणों को उद्धृत करते हैं, जिन से मल्लवादी के काल पर प्रकाश पड़ता है। १. हेमचन्द्र अपने व्याकरण की बृहती टीका में लिखता है'अनुमल्लवादिनः ताकिकाः। - २. धर्मकीतिकृत न्यायविन्दु पर धर्मोत्तर नामक बौद्ध विद्वान् ने टीका लिखी है, उस पर प्राचार्य मल्लवादी ने धर्मोत्तरटिप्पण लिखा। है। ऐतिहासिक व्यक्ति धर्मोत्तर का काल विक्रम की सातवीं शताब्दी २० मानते हैं। ..... .. ... . .. ... ३. पं० नाथूराम जी प्रेमी ने अपने 'जैन साहित्य और इतिहास नामक ग्रन्थ में लिखा है... 'प्राचार्य हरिभद्र ने अपने 'अनेकान्तजयपताका' नामक ग्रन्थ में वादिमुख्य मल्लवादी कृत 'सन्मतिटीका' के कई अवतरण दिये हैं, २५ १. पृष्ठ १, २ । २. निर्णयसागर सं० पृष्ठ ७८ । ३. २॥२॥३६॥ ४. मोहनलाल दलीचन्द देसाईकृत 'जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ १३६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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