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प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६६७
प्रक्रियाग्रन्थकार
१-प्रार्य श्रुतकीति (सं० १२२५ वि०). ___आर्य श्रुतकीर्ति ने जैनेन्द्र व्याकरण पर 'पञ्चवस्तु' नामक प्रक्रियाग्रन्थ रचा है । कन्नड़ भाषा के चन्द्रप्रभचरित के कर्ता अग्गलदेव ने श्रुतकीत्ति को अपना गुरु लिखा है । चन्द्रप्रभचरित की रचना ५ शकाब्द १०११ (वि० सं० ११४६) में हुई है। यदि अग्गलदेव का गुरु श्रुतकीर्ति ही पञ्चवस्तुप्रक्रिया ग्रन्थ का रचयिता हो, तो श्रुतिकीर्ति का काल विक्रम की १२ वीं शताब्दी का प्रथम चरण होगा ।
नन्दी संघ की पट्टावली में किसी श्रुतकीति को वैयाकरण भास्कर .. कहा गया है-विद्यश्रुतकीयाख्यो वैयाकरणभास्करः।' हमारे १० विचार में विद्यश्रुतकीति आर्य श्रुतकीर्ति से भिन्न उत्तर कालिक व्यक्ति है।
२-वंशीधर (२० वीं शताब्दी वि०) पं० वंशीधर ने अभी हाल में जैनेन्द्रप्रक्रिया ग्रन्थ लिखा है। इसका केवल पूर्वार्ध ही प्रकाशित हुआ है। .
१५ जैनेन्द्र व्याकरण का दाक्षिणात्य संस्करण - जैनेन्द्र व्याकरण का 'दाक्षिणात्य संस्करण' के नाम से जो ग्रन्थ प्रसिद्ध है, वह प्राचार्य देवनन्दी की कृति नहीं है, यह हम सप्रमाण लिख चुके हैं । इस ग्रन्थ का बास्तविक नाम 'शब्दार्णव' है।
शब्दार्णव का संस्कर्ता-गुणनन्दी (सं० ९१०-९६० वि०) २० ___प्राचार्य देवनन्दी के जनेन्द्र व्याकरण में परिवर्तन और परिवर्धन करके उसे नवीन रूप में परिष्कृत करने वाला आचार्य गुणनन्दी है । इसमें निम्न हेतु हैं
१-सोमदेव सूरि ने 'शब्दार्णव' पर 'चन्द्रिका' नाम्बी लघ्वी टीका लिखी है। उसके अन्त में वह अपनी टीका को गणनन्दी विर- २५ चित शब्दार्णव में प्रवेश करने के लिये नौका समान लिखता है ।'
१. सं० प्रा० जैन व्या० और कोश की परम्परा- पृष्ठ ५७ । । २. श्रीसोमदेवयतिनिर्मितमादधाति या नौः प्रतीवगुणनन्दितशब्दार्णवाब्धौ ।