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________________ ८४. आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६६५ प्रत्याहार सूत्रों का मुद्रण ही नहीं हुअा । द्र० इसी संस्करण के प्रारम्भ में मुद्रित 'दो शब्ब' पृष्ठ १४ ।। ३-प्रभाचन्द्राचार्य (सं० १०७५-११२५ वि०) प्राचार्य प्रभाचन्द्र ने जैनेन्द्र व्याकरण पर 'शब्दाम्भोजभास्करन्यास' नाम्नी महती व्याख्या लिखी है । शब्दाम्भोजभास्कर की ५ पुष्पिका के लेख से विदित होता है कि प्राचार्य प्रभाचन्द्र ने इस व्याख्या का प्रणयन जयदेवसिंह के राज्यकाल में किया था। प्रभाचन्द्राचार्य मालवा के धारानगरी के निवासी थे। यह व्याख्या अभयनन्दी की महावृत्ति से भी विस्तृत है । इस. का परिमाण १६०० सोलह सहस्र श्लोक माना जाता है। परन्तु इस समय समग्र उपलब्ध नहीं होती। १० इस की अ० ४, पाद ३, सूत्र २११ तक की ही हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त होती हैं । __प्रभाचन्द्र ने 'शब्दाम्भोजभास्करन्यास' के तृतीय अध्याय के अन्त में अभयनन्दी को नमस्कार किया है । अतः यह अभयनन्दी से उत्तरवर्ती है, यह स्पष्ट है। __ प्रमेयकमलमार्तण्ड और न्यायकुमुदचन्द्र का कर्ता भी यही प्रभाचन्द्र है, क्योंकि उसने इन दोनों ग्रन्थों में निरूपित अनेकान्त चर्चा का उल्लेख शब्दाम्भोजभास्करन्यास के प्रारम्भ में किया है। प्रमेयकमलमार्तण्ड के अन्तिम लेख मे. विदित होता है कि प्रभाचन्द्र ने यह १. श्रीजयदेवसिंहराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना. परापरपञ्चपरमेष्ठिप्रमाणोपाजितामलपुण्यनिराकृतनिखिलमलकलङ्केन श्रीमत्प्रभाषन्द्रपण्डितेन । शब्दाम्भोजभास्कर की पुष्पिका लेख । द्र०-श्री जैन सत्यप्रकाश' पत्रिका वर्ष ७ अंक १-२-३ (दीपोत्सवी मक) पृष्ठ ८३ । २. इसी पृष्ठ की टि० १-५, तथा पृष्ठ ६६६ की टि० ३। ३. सं० प्रा० जैन व्याकरण और कोश की परम्परा, पृष्ठ ५६ । । ४. वही, पृष्ठ ५६ । ५ कोऽयमनेकान्तो नामेत्याह-अस्तित्वनास्तित्वनित्यत्वंसामान्यासामान्याधिकरण्यविशेषणविशेष्यादिकोऽनेकान्तः स्वभावी यस्यार्थस्यासावनेकान्त: अनेकान्तात्मक इत्यर्थः.....तथा प्रपंचतः प्रमेयकमलमार्तण्डे न्यायकुमुदचन्द्र च प्रतिमिरूपितमिह द्रष्टव्यम् ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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