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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
श्रीगणनन्दी
विबुधनन्दी.
अभयनन्दी
वीरनन्दी .. - यदि वीरनन्दी का गुरु अभयनन्दी ही महावृत्ति का रचयिता हो,
तो उसका काल सं० १०३५ से पूर्व निश्चित है । १० ५-श्री अम्बालाल प्रेमचन्द शाह ने अभयनन्दी का काल ई० सन् ६६० (=वि० सं० १०१७) के लगभग माना है।'
६ -डा० बेल्वाल्कर ने अभयनन्दी का काल ई० सन् ७५० (वि० सं० ८०७) स्वीकार किया है।'
इन सब प्रमाणों के आधार पर हमारा विचार है कि अभयनन्दी १५ का काल सामान्यतया वि० सं० ८००-१०३५ के मध्य है। बहुत
सम्भव है कि वीरनन्दी का गुरु ही महावृत्तिकार अभयनन्दी हो, उस अवस्था में अभयनन्दी का काल वि० सं० ६७५-१०३५ के मध्य युक्त होगा।
'पाल्यकीति प्रोक्त शाकटायन-तन्त्र की स्वोपज्ञ अमोघा वृत्ति का २० अभयनन्दी विरचित महावृत्ति के साथ तुलना करने से ज्ञात होता है
कि अमोघावृत्ति पर जैनेन्द्र महावृत्ति का बहुत प्रभाव है । अतः अभयनन्दी का काल पाल्यकीर्ति (वि० सं० ८७१-६२४) से पूर्व होना चाहिये। ..
... महावृत्ति का नवीन संस्करण-अभयनन्दी कृत सम्पूर्ण महावृत्ति २५ का संस्करण सं० २०१३ में 'भारतीय ज्ञानपीठ काशी' से छपा है ।
सम्पादक को जैनेन्द्र व्याकरण का ज्ञान न होने से यह संस्करण बहुत्र अशुद्ध मूद्रित हुया है। द्र० इस संस्करण के प्रारम्भ में मुद्रित हमारा 'जैनेन्द्र शब्दानुशासन और उस के खिलपाठ' शीर्षक लेख (पृष्ठ ५३
५४) । इस संस्करण में सब से भारी भूल यह रही कि जैनेन्द्र के . ३०
१. जैन सत्यप्रकाश, वर्ष ७, दीपोत्सवी अक (१६४१) पृष्ठ ८३ । २. सिस्टम्स् श्राफ संस्कृत ग्रामर, पैरा ५० ।