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________________ आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६६३ २-अभयनन्दी (सं० ९७४-१०३५ वि०) अभयनन्दी ने जैनेन्द्र व्याकरण पर एक विस्तृत वृत्ति लिखी है। यह 'महावृत्ति' के नाम से प्रसिद्ध है । इस वृत्ति का परिमाण १२००० बारह सहस्र श्लोक है । ग्रन्थकार ने अपना कुछ भी परिचय स्व-ग्रन्थ में नहीं दिया। अतः अभयनन्दी का देश काल अज्ञात है। ५ पूर्वापर काल में निर्मित ग्रन्थों में निर्दिष्ट रद्धरणों के आधार पर अभयनन्दी का जो काल माना जा सकता है, उसकी उपपत्ति मीचे दर्शाते हैं । यथा १-अभयनन्दी कृत महावृत्ति ३ । २ । ५५ में 'तत्त्वार्थवार्तिकमधीते' उदाहरण मिलता है । तत्त्वार्थवार्तिक भट्ट अकलङ्क की रचना १० है। अकलङ्क का काल वि० सं० ७०० के लगभग है।' यह इसकी पूर्व सीमा है। ___ २-वर्धमान ने 'गणरत्नमहोदधि' (काल ११९७ वि०) में अभयनन्दी स्वीकृत पाठ का निर्देश किया है। अतः अभयनन्दी वि० सं० ११६७ से पूर्ववर्ती है। यह इसकी उत्तर सीमा है। १५ . ३-प्रभाचन्द्राचार्य ने 'शब्दाम्भोजभास्कर-न्यास' के तृतीय अध्याय के अन्त में अभयनन्दी को नमस्कार किया है। शब्दाम्भोजभास्कर-न्यास का रचनाकाल सं० १११०-११२५ तक है, यह हम अनुपद लिखेंगे । अतः अभयनन्दी सं० १११० से पूर्ववर्ती है, यह स्पष्ट __ ४-चन्द्रप्रभचरित महाकाव्य के कर्ता वीरनन्दी का काल सं० १०३५ (शकाब्द ६००) के लगभग है। वीरनन्दी की गुरुपरम्परा इस प्रकार है १. अकलङ्क चरित में प्रकलङ्क का बौद्धों के साथ महान् वाद का काल विक्रमाब्द शताब्दीय ७०० दिया है। भारतबर्ष का बृहद् इतिहास भाग १, २५ पृष्ठ १२४, द्वि० सं० । संस्कृत-साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ १७३ में ई० सन् ७५० लिखा है। २. जैन अभयनन्दिस्वीकृतो पितृकमातृक शब्दावपि संगृहीतौ । ३. जैन साहित्य और इतिहास, प्र० सं० पृष्ठ १११; द्वि० सं० पृष्ठ ३८ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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