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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
उणादिपाठ तथा लिङ्गानुशासन सहित पांच अङ्गों से पूर्ण व्याकरण है। धातुपाठ आदि का वर्णन आगे यथास्थान किया जायेगा। - जैनेन्द्र व्याकरण का आधार
जैनेन्द्र व्याकरण का मुख्य आधार पाणिनीय व्याकरण है, कहीं ५ कहीं पर चान्द्र व्याकरण से भी सहायता ली है। यह बात इनकी
पारस्परिक तुलना से स्पष्ट हो जाती है । जैनेन्द्र व्याकरण में पूज्यपाद ने श्रीदत,' यशोभद्र, भूतबलि, प्रभाचन्द्र, सिद्धसेन और समन्तभद्रः इन ६ प्राचीन जैन आचार्यों का उल्लेख किया है। 'जैन
साहित्य और इतिहास' के लेखक पं० नाथूरामजी प्रेमी का मत है कि १० इन प्राचार्यों ने कोई व्याकरणशास्त्र नहीं रचा था। हमारा विचार है कि उक्त आचार्यों ने व्याकरणग्रन्थ अवश्य रचे थे।
जैनेन्द्र व्याकरण के व्याख्याता जैनेन्द्र व्याकरण पर अनेक विद्वानों ने व्याख्याएं रची। आयश्रतकीत्ति पञ्चवस्तुप्रक्रिया के अन्त में जैनेन्द्र व्याकरण की विशाल १५ राजप्रासाद से उपमा देता है। उसके लेखानुसार इस व्याकरण पर
न्यास, भाष्य, वत्ति और टीका आदि अनेक व्याख्याएं लिखी गई । उनमें से सम्प्रति केवल ४, ५ व्याख्याग्रन्थ उपलब्ध होते हैं।
१-देवनन्दी (सं० ५०० वि० से पूर्व) हम 'अष्टाध्यायी के वृत्तिकार' प्रकरण में लिख चुके हैं कि २० आचार्य देवनन्दी ने अपने व्याकरण पर जैनेन्द्र संज्ञक न्यास लिखा था। यह न्यास ग्रन्थ सम्प्रति अनुपलब्ध है।
१. गुणे श्रीदत्तस्यास्त्रियाम् । १ । ४ । ३४ ॥ २. कृवृषिमृजां यशोभद्रस्य २ । १ । ६६ ॥ ३. राद् भूतबलेः । ३ । ४ । ८३ ॥ ४. रात्रैः कृति प्रभाचन्द्रस्य । ४ । ३ । १८० ॥ ५. वेत्तेः सिद्धसेनस्य । ५। १ । ७ ॥ ६. चतुष्टयं समन्तभद्रस्य ५ । ४ । १४० ॥ ७. द्र० पूर्व पृष्ठ ६१० ।
८. सूत्रस्तम्भसमुदधृतं प्रविलसन् न्यासोरूरत्नक्षितिः श्रीमद्वत्तिकपाटसंपूटयुगं भाष्योऽथ शय्यातलम् । टीकामालमिहारुरुक्षुरचितं जैनेन्द्रशब्दागमं प्रासाद ३० पृथु पञ्ववस्तुकमिदं सोपानमारोहतात् । ६. पूर्व पृष्ठ ४६० ।