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आचार्य पाणिनि से अचीन वैयाकरण :
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शासन के धातुपाठ, उणादिसूत्र आदि अवश्य रचे होंगे। परन्तु उन का स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता। उज्ज्वलदत्तविरचित उणादिवृत्ति में क्षपणक के नाम से एक ऐसा पाठ उद्धृत है, जिससे प्रतीत होता है कि क्षपणक ने उणादिसूत्रों की कोई व्याख्या रची थी। वे सूत्र निश्चय ही उसके स्व-प्रोक्त होंगे।
स्वोपनवृत्ति क्षपणक-विरचित उणादिवृत्ति का उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं। उससे सम्भावना होती है कि क्षपणक ने अपने शब्दानुशासन पर भी कोई वृत्ति अवश्य रची होगी। मैत्रेयरक्षित ने तन्त्रप्रदीप में लिखा
_ 'प्रत एव नावमात्मानं मन्यते इति विग्रहपरत्वादनेन ह्रस्वत्वं बाधित्वा प्रमागमे सति 'नावंमन्ये' इति श्रपणकव्याकरणे दर्शितम्' । ___ यह पाठ निश्चय ही किसी क्षपणक-वृत्ति से उद्धृत किया गया
क्षपणक महान्यास मैत्रेयरक्षित ने तन्त्रप्रदीप ४।१। १५५ वा १३५३ में 'क्षपणक महान्यास' को उद्धृत किया है । यह ग्रन्थ किसकी रचना है, यह अज्ञात है । 'महान्यास' में लगे हुए 'महा' विशेषण से व्यक्त है कि 'क्षपणक' व्याकरण पर कोई न्यास ग्रन्थ भी रचा गया था। .
क्षपणक-व्याकरण के सम्बन्ध में हमें इससे अधिक कुछ ज्ञात २० नहीं।
४. देवनन्दी (सं० ५०० वि० से पूर्व) आचार्य देवनन्दो अपर नाम पूज्यपाद ने 'जनेन्द्र' संज्ञक एक शब्दानुशासन रचा है । आचार्य देवनन्दी के काल आदि के विषय में २५ हम 'अष्टाध्यायी के वृत्तिकार' प्रकरण में विस्तार से लिख चुके हैं।
१. क्षपणकवृत्ती पत्र 'इति' शब्द आद्यर्थे व्याख्यातः। पृष्ठ ६० । २. द्र०—पूर्व पृष्ठ ६५६ टि० १। ३. द्र०-पूर्व पृष्ठ ६५६, टि० २ । ४. द्र०-पूर्व पृष्ठ ४८६-४६७।