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________________ ६४६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ने १४ वीं शती में 'दुर्गपद प्रबोध' नाम को व्याख्या लिखो थी। इस के प्रारम्भिक श्लोक में 'पञ्जिका' का उल्लेख है। यह पञ्जिका त्रिलोचनदास कृत है अथवा जिनेश्वर सूरि के शिष्य सोमकोति विरचित, यह अज्ञात है।' ३-कुलचन्द्र ने 'दुर्गवाक्य प्रबोध' नाम का एक ग्रन्थ लिखा था।' प्रक्रिया ग्रन्थ पं० बलदेव ने बूंदी (राजस्थान) के नृपति रामसिंह की आज्ञा से सं० १९०५ में 'कलापप्रक्रिया' नाम के ग्रन्थ की रचना की थी। बलदेव के गुरु का नाम अाशानन्द था। ग्रन्थ कार ने उक्त परिचय निम्न श्लोकों में दिया है बाणाखकेन्दुमिते (१९०५) विक्रमादित्यतो गते । वर्षऽथ रामसिंहाज्ञो प्रेरितेन द्विजेन । बलदेव रचिता कातन्त्र प्रक्रिया शुभा। उपदेशाद् गुरोराशानन्दोत्थाद् भाग्ययोगतः ।। इस ग्रन्थ का एक हस्तलेख जोधपुर में विद्यमान है।' कातन्त्र सूत्रपाठ पर इनके अतिरिक्त अन्य अनेक वृत्तियां लिखो गई होंगी. परन्तु हमें उनका ज्ञान नहीं है । २. चन्द्रगोमी (सं० १००० वि० पूर्व) प्राचार्य चन्द्रगोमी ने पाणिनीय व्याकरण के आधार पर एक नए व्याकरण की रचना की। इस ग्रन्थ की रचना में चन्द्रगोमो ने पातञ्जल महाभाष्य से भी महतो सहायता ली है। परिचय वंश-चन्द्राचार्य के वंश का कोई परिचय उपलब्ध नहीं होता। मत--चान्द्रव्याकरण के प्रारम्भ में जो श्लोक उपलब्ध होता है, १. जैन सं० प्रा. व्या० और कोश की परम्परा पृष्ठ १२० । २. " " " " १२२ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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