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आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण
मतानुयायी था । इस का मूल पाठ बङ्गीय पाठ से भिन्न है ।"
हम पूर्व पृष्ठ ६४० पर एक अज्ञात नाम ग्रन्थकार की चिच्छुवृत्ति का उल्लेख कर चुके हैं । हमें नाम के कुछ सादृश्य से सन्देह होता है कि पूर्व निर्दिष्ट चिच्छुवृत्ति सम्भवतः छच्छुक भट्ट द्वारा ही लिखित होवे ।
११ - कर्मघर
भट्ट कर्मधर ने कातन्त्र पर ' कातन्त्र मन्त्रप्रकाश' नाम का एक ग्रन्थ लिखा था । इसका द्वन्द्व समासान्त खण्ड चतुष्टयात्मक हस्तलेख अलवर के 'राजस्थान प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान' में विद्यमान है. द्र० ग्रन्थ संख्या ३२०३ | इस का विस्तृत वर्णन 'कातन्त्र व्याकरण - विमर्श (पृष्ठ ३४-३५ ) में देखें ।
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१२- धनप्रभ सूरि
धनप्रभ सूरि ने कातन्त्र की 'चतुष्क व्यवहार दुष्टिका' नाम की १५ व्याख्या लिखी थी । यह व्याख्या तद्धित पर्यन्त उपलब्ध होती है । *
मुनि ईश्वर सूरि के दीपिका' नाम्नी एक उपलब्ध होती है । "
१३ – मुनि श्रीहर्ष
शिष्य मुनि श्रीहर्ष ने कातन्त्र पर ' कातन्त्र - व्याख्या लिखी थी । यह व्याख्या आख्यातान्त २०
अन्य व्याख्याग्रन्थ
१. जिनप्रबोध सूरि ने सं० १३२८ में 'दुर्गपदप्रबोध' नाम की एक टीका लिखी थी । *
२- प्रबोध मूर्तिगण -- जिनेश्वर सूरि के शिष्य प्रबोध मूर्तिगणि २५
१. कातन्त्र व्याकरण विमर्श, पृष्ठ २९ ।
२.
३४ ।
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६४५
11
२५ ।
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४. जैन सं० प्रा० व्या० श्रौर कोश की परम्परा, पृष्ठ १२१ ।
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