________________
६४४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
जगद्धर का अन्य ग्रन्थ-श्री उपेन्द्रशरण जी शास्त्री ने ही हमें जंगीर कृत एक अन्य ग्रन्थ की भी सूचना दी। ग्रन्थ का नाम हैअपशब्द निराकरण इसका एक हस्तलेख भण्डारकर शोधसंस्थान पूना में है। इसके पांच पत्र हैं, प्रति पृष्ठ २५ पंक्तियां हैं । इसका निर्देश सूचीपत्र में २७१ (बी) १८७५-१८७६ ग्रन्थ सं० ४२४ पर है । इस हस्तलेख के साथ चित्रकाव्य ग्रन्थ भी है। ___ यह खेद का विषय है कि कुछ वर्ष पश्चात् ही पं० उपेन्द्र शरण जी का निधन हो गया। इस कारण यह ग्रन्थ प्रकाशित होने से रह गया।
बालबोधिनी का टीकाकार-राजानक शितिकण्ठ राजानक शितिकण्ठ ने जगद्धरविरचित 'बालबोधिनी' वृत्ति की व्याख्या लिखी है। राजानक शितिकण्ठ जगद्धर का 'नप्तृकन्यातनयातनूज' अर्थात् पोते की कन्या का दौहित्र था। राजनक शितिकण्ठ का काल १५ वीं शताब्दी का उत्तरार्ध है।
९-पुण्डरीकाक्ष विद्यासागर (सं० १४५०-१५५० वि०) -
पुण्डरीकाक्ष विद्यासागर ने कातन्त्रव्याकरण की एक वृत्ति लिखी थी। इसका निर्देश पुरुषोत्तमदेवीय परिभाषावृत्ति के सम्पादक श्री दिनेशचन्द्र भट्टाचार्य ने भूमिका पृष्ठ १८ पर किया है ।
पुण्डरीकाक्ष-विरचित न्यास टीका का उल्लेख हम पूर्व कर चुके हैं । इसने भट्टि काव्य पर भी एक टोका लिखी थी। उसका वर्णन 'काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि' नामक ३० वें अध्याय में करेंगे।
१०-छुच्छुक भट्ट छुच्छुक भट्ट ने कातन्त्र की एक लघुवृत्ति लिखी। इस लघुवृत्ति का ३७८ पत्रात्मक एक नागराक्षरों में लिखित हस्तलेख दिल्ली के 'प्राचीन ग्रन्थ संग्रहालय' में है । इस का प्रचलन कश्मीर में वि० के १६ शती तक रहा ऐसा उसके विवरण से ज्ञात होता है । लेखक शैव