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प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६४३ इस के अनुसार यह अवणि टीका गोपालाचार्य ने सं० १७६३ . के दक्षिणायन पौषमास शुक्लपक्ष प्रतिपदा मंगलवार को लिखी थी।
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८-जगद्धर भट्ट (सं० १३५० वि० समीपवर्ती) जगद्धर ने अपने पुत्र यशोधर को पढ़ाने के लिये कातन्त्र की ५ 'बालबोधिनी' वत्ति लिखी है। जगद्धर कश्मीर का प्रसिद्ध पण्डित है। उसने 'स्तुतिकुसुमाञ्जलि' ग्रन्थ और मालतीमाधव आदि अनेक ग्रन्थों की टीकाएं लिखी हैं । जगद्धर के पितामह गौरधर ने यजुर्वद की 'वेदविलासिनी' नाम्नी व्याख्या लिखी थो।' ___ डा० बेल्वाल्कर ने जगद्धर का काल १० वीं शताब्दी माना है, १० वह ठीक नहीं है। क्योंकि जगद्धर ने वेणीसंहार नाटक की टीका में रूपावतार को उद्धृत किया है । रूपावतार की रचना सं० ११४० . के लगभग हई है, यह हम पूर्व प्रतिपादन कर चुके हैं। जगद्धर का काल सं० १३५० के लगभग । है ___ बम्बई विश्वविद्यालय के जर्नल में 'डेट आफ जगद्धर' लेख छपा १५ है। उसके लेखक ने भी जगद्धर का काल सामान्यतया ईसा की १४ वीं शती प्रमाणित किया है । द्रष्टव्य-उक्त जर्नल सितम्बर १६४० भाग ६, पृष्ठ २।
बाल बोधिनी का हस्तलेख १० जुलाई १९७३ को मेरा 'उज्जैन' (म० प्र०) जाना हुआ। वहां श्री पं० उपेन्द्रशरण जी शास्त्री (प्राचार्य, संस्कृत महाविद्यालय महाकाल मन्दिर, उज्जन) से अकस्मात् भेंट हुई । वे 'जगद्धर भट्ट' पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने जगद्धरकृत 'बालंबोधिनी टीका' को प्रतिलिपि दिखाई । टीका वस्तुतः यथा नाम तथा गुणः के अनुरूप है। इसका मूल हस्तलेख 'कीति मन्दिर, विक्रम विश्वविद्यालय २५ उज्जैन' के संग्रह में विद्यमान है।
१. वैदिक वाङमय का इतिहास भाग २, पृष्ठ ६६, सन् १९७६ का संस्करण।
२. अत्र जयत्विति, अत्र यद्यपि जयतेरनभिधानादुत्वं न भवति इति रूपावतारे दृश्यते । पृष्ठ १८, निर्णयसागर संस्करण । ३. द्र०-पूर्व पृष्ठ ५८६-५८७ ।
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