________________
प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६३५ कार दुर्ग और टीकाकार दुर्ग को एक माना है।'
दुर्गसिंह अपनी टीका में लिखता है-'नयासिकास्तु ह्रस्वत्वं विदधतेऽविशेषात् ।'
टीकाकार ने यहां किस न्यास का स्मरण किया है, यह अज्ञात है। उग्रभूति ने कातन्त्रवृत्ति पर एक न्यास लिखा था। (उसका ५ उल्लेख आगे होगा)। उसका काल विक्रम की ११ वीं शताब्दी है। अतः यहां उसका उल्लेख नहीं हो सकता ।
दुर्गसिंह ने कृत्सूत्र ४१, ३८ को वृत्तिटीका में श्रुतपाल का उल्लेख किया है।' यह श्रुतपाल देवनन्दी विरचित धातुपाठ का व्याख्याता है। कातन्त्र २ । ४ । १० की वत्तिटीका में भट्रि ८ । ७३ का १० 'श्लाघमानः परस्त्रीभ्यस्तत्रागाद् राक्षसाधिपः' चरण उद्धृत है ।
टीकाकार दुर्गसिंह के काल का अभी निश्चय नहीं हो सका। सम्भव है कि यह नवमी शताब्दी का ग्रन्थकार हो।
२-उग्रभूति (११ वीं शताब्दी वि०) उग्रभूति ने दुर्गवृत्ति पर 'शिष्यहितन्यास" नाम्नी टीका लिखी १५ है। मुसलमान यात्री अल्बेरूनी इसका नाम 'शिष्यहिता वृत्ति' लिखता है। उसने इस ग्रन्थ के प्रचार की कथा का भी उल्लेख किया है। इस कथा के अनुसार उग्रभूति का काल विक्रम की ११ वीं शताब्दी है। गुरुपद हालदार ने 'शिष्यहिता न्यास' को कश्मीर में प्रचलित 'चिच्छुवृत्ति' का व्याख्यान माना है ।
शिष्यहितान्यास दुर्गवृत्ति पर है अथवा चिच्छु वृत्ति पर; इस का
१. प्रोरियण्टल कान्फ्रेंस, सन् १९४३, ४४ (बनारस), भागवृत्तिविषय लेख।
२.३ । ४ । ७१ ॥ परिशिष्ट पृष्ठ ५२८ । ३. व्याकरण दर्शनेर इतिहास, पृष्ठ ४६५।। ४. हरिभद्र कृत जैन प्रावश्यकसूत्र की टीका का नाम भी शिष्यहिता है। ५. इस का एक हस्तलेख श्रीनगरस्थ राजकीय पुस्तकालय में सुरक्षित है। ६. अल्बेरुनी का भारत, भाग २, पृष्ठ ४०, ४१ ।
७. कौमार सम्प्रदाये चिच्छवृत्तिर उपरि काश्मीरक उग्रभूति शिष्यहिता- । न्यास प्रणयन करेन । व्याकरण दर्शनेर इतिहास, पृष्ठ २६८ ।
..२५