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________________ ६३४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास के प्रथमकाण्ड का भाष्य लिखा।' उसके गुरु स्कन्दस्वामी ने अपनी निरुक्तटीका में दुर्गाचार्य का उल्लेख किया हैं । अतः निरुक्तवृत्तिकार दुर्ग का काल भी सं० ६००-६८० के मध्य सिद्ध होता है । ___ यदि शतपथ भाष्यकार हरिस्वामी विक्रम का समकालिक होवे ५ (हमारा यही मन्तव्य है) तो कातन्त्रवृत्तिकार दुर्ग निरुक्तवृत्तिकार से से भिन्न होगा। यदि हमारा उपर्युक्त लेख सत्य हो तो कातन्त्रवृत्तिकार के विषय में अधिक प्रकाश पड़ सकता है । दुर्गवृत्ति के टीकाकार १० दुर्गवृत्ति पर अनेक विद्वानों ने टीकाएं लिखी हैं। उनमें से निम्न टीकाकार मुख्य हैं १-दुर्गसिंह (९ वीं शताब्दी वि. ?) कातन्त्रवृत्ति पर दुर्गसिंह ने एक टीका लिखी है। पं० गुरुपद हालदार ने टीकाकार का नाम दुर्गगुप्तसिंह लिखा है। टीकाकार १५ ग्रन्थ के प्रारम्भ में लिखता है 'भगवान् वृत्तिकारः श्लोकमेवं कृतवान् देवदेवमित्यादि । इससे स्पष्ट है कि टीकाकार दुर्गसिंह वृत्तिकार दुर्गसिंह से भिन्न व्यक्ति है। अन्यथा वह अपने लिये परोक्षनिर्देश करता हुआ भी 'भगवान' शब्द का व्यवहार न करता। कीथ ने अपने संस्कृत साहित्य के इतिहास में लिखा है-दुर्गसिंह ने अपनी वत्ति पर स्वयं टीका लिखी। यही बात एस. पी. भट्टाचार्य ने आल इण्डिया ओरियण्टल कान्फ्रेंस वाराणसी (१९४३-४४) में अपने भागवत्तिविषयक लेख में लिखी है । वस्तुतः दोनों लेख अयुक्त हैं। सम्भव है कि कीथ को दोनों के नामसादृश्य से भ्रम हुआ हो, २५ और एस. पी. भट्टाचार्य ने कीथ का ही मत उद्धृत कर दिया हो । कीथ का अनुकरण करते हुए एस० पी० भट्टाचार्य ने भी वृत्ति१. देखो-पूर्व पृष्ठ ३८८ । २. देखो-पूर्व पृष्ठ ६३३ की टि० २ । ३. यह टीका बंगला अक्षरों में सम्पूर्ण छप चुकी है। ४. द्र०—पृष्ठ ४३१ (हिन्दी अनुवाद ५११)।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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