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________________ प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६२६ १-शर्ववर्मा श्री पं० गुरुपदं हालदार ने अपने 'व्याकरण दर्शनेर इतिहास' के पृष्ठ ४३७ पर शर्ववर्मा को कातन्त्र की 'बृहद्वत्ति' का रचयिता लिखा है।' परन्तु इसके लिये उन्होंने कोई प्रमाण नहीं दिया । सातवाहन को कातन्त्र सूत्र पढ़ाते समय उसकी वृत्ति वा व्याख्यान अवश्य ५ किया होगा। अतः शर्ववर्मा कृत वृत्ति का सद्भाव स्वयं सिद्ध है। २-वररुचि पं० गुरुपद हालदार ने अपने ग्रन्थ के पृष्ठ ३६४ और ५७६ पर वररुचि-विरचित कातन्त्रवत्ति का उल्लेख किया है । पृष्ठ ५७६ पर वररुचिकृत वत्ति का नाम चैत्रकूटी लिखा है। परन्तु कातन्त्र व्या- १० ख्यासार के लेखक हरिराम ने वररुचि विरचित वृत्ति का नाम 'दुर्घट वृत्ति' लिखा है । उसके मतानुसार दुर्गसिंह कृत कातन्त्र वृत्ति प्रारम्भ में पठित देवदेवं प्रणम्यादौ मङ्गला चरण का श्लोक भी वररुचिकृत है । वह लिखता है। ____ अथ चकारेतिकथमुच्यते ? लिलेख इति वक्तुं युज्यते । यावता १५ 'देवदेवम्' इत्यादि श्लोको वररुचिकृतदुर्घटवृत्तेरादौ दृश्यते"..। कातन्त्र व्याकरण विमर्श के लेखक पं० जानकीप्रसाद द्विवेद ने ये कविराज सुषेण कृत कलापचन्द्र ग्रन्थ से वाररुचवृत्ति तथा वररुचि के निम्न उद्धरण दिये हैं- १. नाग्रहणं योगविभागार्थ तेन किं स्यादित्याह-तस्मिन्नित्यादि २० वररुचिवृत्तिः । (कवि० ३।२।३८)। . २. विन्दुमात्र इति-स चार्धचन्द्राकृतिस्तिलकाकृतिश्चेति वररुचिः । ३, अर्थः पदमैन्द्राः, विभक्त्यन्तं पदमाहुरापिशलीयाः सुप्तिङन्तं पदमिति पाणिनीयाः । इहार्थोपलब्धौ पदमिति वररुचिः । . २५ ४. वाशब्दश्चापिशब्दैर्वा शब्दानां (सूत्राणां) चालमैस्तथा । . __एभिर्येऽत्र न सिद्ध्यन्ति ते साध्या लोकसम्मता: । इति . वररुचिः । १. जिनि कातन्त्रेर विस्तर वत्ति लिखिया छन तिनि सर्ववर्मार नाम करेन ना केन । ___२. कातन्त्र व्याकरण विमर्श, पृष्ठ ७, टि० १ ॥ ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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