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________________ ७९ प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६२५ कातन्त्रोत्तर-परिशिष्ट का कर्ता-त्रिलोचन कविचन्द्र विजयानन्दकृत कातन्त्रोत्तर की पूर्ति के लिये त्रिलोचन कविचन्द्र ने कातन्त्रोत्तर का परिशिष्ट लिखा । इस के पुत्र कवि कण्ठाहार ने परिभाषा टीका और चर्करीत रहस्य लिखा था । चर्करोत रहस्य की दूसरी कारिका में उसने लिखा है गुरुणा चोत्तरपरिशिष्टं यदभिहितमविरुद्धम् । यहां गुरु शब्द से स्वीय जनक कविचन्द्र का निर्देश किया है। . कातन्त्र प्रकीर्ण-विद्यानन्द कातन्त्रीय परिभाषा पाठ के वृत्तिकार भावमित्र ने ग्रन्य के प्रारम्भ में प्रकीणकर्ता विद्यानन्द को स्मरण किया है। इस पर १० कातन्त्रव्याकरणविमर्श के लेखक जानकीप्रसाद द्विवेद ने लिखा है'यह विद्यानन्द कौन है, किविषयक प्रकोर्णनाम का ग्रन्थ है यह तत्त्वतः ज्ञात नहीं होता। कातन्त्रोत्तर नाम का अन्य विद्यानन्द ने लिखा (विजयानन्द का नामान्तर विद्यानन्द भी था) और प्रकीर्ण शब्द से कातन्त्रोत्तर को स्मरण किया हो तो यह विद्यानन्द प्रणीत १५ कातन्त्रोत्तर ग्रन्थ है क्योंकि कातन्त्रोतर परिशिष्ट रूप है।" कातन्त्रछन्दःप्रक्रिया-श्रीचन्द्रकान्त श्रीचन्द्रकान्त तर्कालंकार ने कातन्त्र की पूर्ति के लिये कातन्त्रछन्दःप्रक्रिया का संकलन किया। इस के सूत्रों पर उस की वृत्ति भी उपलब्ध होती है। २० कातन्त्र व्याकरण के अनुयायियों में कातन्त्र के अधूरेपन को दूर करने के लिये कितना प्रयत्न किया, यह उक्त प्रकरण से स्पष्ट विदित हो जाता है, परन्तु इस प्रयत्न से कातन्त्र व्याकरण का मूल उद्देश्य ही लुप्त हो गया। कातन्ज्ञ का संस्कार २५ कातन्त्र व्याकरण का जो पाठ सम्प्रति उपलब्ध है उस का संस्कार वा परिष्कार दुर्गसिंह ने किया है। ऐसा पं० जानकीप्रसाद १. कातन्न व्याकरण विमर्श, पृष्ठ ४४-४५ । २. कातन्त्र व्याकरण विमर्श, पृष्ठ १६६-१६७ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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