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प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण
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इस लेख के लेखक ने टिप्पणी में लिखा है-तिब्बतीय भाषा में शर्वसर्व सप्त सस्त इस प्रकार सर्व का सस्त रूपान्तर बन सकता है। ___ हमारा विचार है कि वर्तमान कातन्त्रव्याकरण शर्ववर्मा द्वारा संक्षिप्त किया हुआ है। इस संक्षिप्त संस्करण का काल भी विक्रम से ५ न्यूनातिन्यून ४००-५०० वर्ष प्राचीन है । इसका मूलग्रन्थ अत्यन्त प्राचीन है, यह हम पूर्व प्रतिपादन कर चुके हैं।
कृपकरण का प्रवक्ता-कात्यायन कातन्त्र का वृत्तिकार दुर्गसिंह कृत्प्रकरण के प्रारम्भ में लिखता
वृक्षादिवदमी रूढा न कृतिना कृता कृतः ।
कात्यायनेन ते सृष्टा विबुधप्रतिपत्तये ॥ अर्थात् कातन्त्र का कृत्प्रकरण कात्यायन ने बनाया है।
कात्यायन नामक अनेक प्राचार्य हो चुके हैं। कृत्प्रकरणरूप भाग किस कात्यायन ने बनाया, यह दुर्गसिंह के लेख से स्पष्ट नहीं होता। १५ सम्भव है कि महाराज विक्रम के पुरोहित कात्यायन गोत्रज वररुचि ने कृत्प्रकरण की रचना की हो। ___ कृत्प्रकरण का कर्ता शाकटायन-डा. वेल्वाल्कर ने जोगराज प्रणीत ‘पादप्रकरणसंगति' नाम के ग्रन्थ का उल्लेख किया है। उसमें कृत्प्रकरण का कर्ता शाकटायन को माना है।' उस का पाठ इस २० प्रकार है
कृतस्तव्यादयः सोपपदानुपपदाश्च ये।
लिङ्गप्रकृतिसिध्यर्थं ताजगौ शाकटायनः।' ‘कृत्प्रकरण का लेखक वररुचि कात्यायन है अथवा शाकटायन, इस विषय में कातन्त्र के प्राचीन वृत्तिकार दुर्ग के वचन को हम २५ प्रामाणिक मानते हैं।
कीथ की भूल-कीथ अपने संस्कृत साहित्य के इतिहास में
१. सिस्टम्स आफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ ८४, पैरा ६५,तथा अगले पृष्ठ की टि०१॥
२. कातन्त्र व्याकरणविमर्श, पृष्ठ ३७ ।