________________
عر
६२२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'वनमाली' नाम के किसी पण्डित द्वारा विरचित 'कातन्त्रव्याकरणो. त्पत्तिप्रस्ताव' नाम का एक ग्रन्थ उद्धृत किया है।' तदनुसार राजा सातवाहन को शीघ्र व्याकरण का ज्ञान कराने के लिये शर्ववर्मा ने शिव की आराधना की। शिवजी ने शर्ववर्मा के मनोरथ की पूर्ति के लिये कुमार कात्तिकेय को आदेश दिया । कात्तिकेय ने अपने व्याकरण सूत्र शर्ववर्मा को दिये ।। ___ कथासरित्सागर और कातन्त्रवृत्तिटीका आदि के अनुसार कातन्त्रव्याकरण के पाख्यातान्त भाग का कर्ता शर्यवर्मा है। मुसल
मान यात्री अल्बेरूनी ने भी कातन्त्र को शर्ववर्मा विरचित लिखा है, १० और कथासरित्सागर में निर्दिष्ट 'मोदकं देहि' कथा का निर्देश किया
है। पं० गुरुपद हालदार ने अपने 'व्याकरण दर्शनेर इतिहास' में शर्ववर्मा को कातन्त्र को विस्तृत वृत्ति का रचयिता लिखा है।
जरनल गङ्गानाथ झा रिसर्च इंस्टीटयू ट भाग १, अङ्ग ४ में तिब्बतीय ग्रन्थों के आधार पर एक लेख प्रकाशित हुआ है । उसमें १५ लिखा है।
___ "सातवाहन के चाचा भासवर्मा ने 'शङ कु' से संक्षिप्त किया ऐन्द्र व्याकरण प्राप्त किया, जिसका प्रथम सूत्र 'सिद्धो वर्णसमाम्नायः' था, और वह १५ पादों में था। इसका वररुचि सस्तवर्मा ने संक्षेप
किया, और इसका नाम कलापसूत्र हुा । क्योंकि जिन अनेक स्रोतों २० से इसका संकलन हुआ था, वे मोर की पूछ के सदृश पृथक्-पृथक् थे। इसमें २५ अध्याय और ४०० श्लोक थे।"
१. सिस्टम्स् प्राफ संस्कृत ग्रामर, पृष्ठ ८२, टि० २। २. वही, पृष्ठ ८२, पैराग्राफ ६४। ३. लम्बक १, तरङ्ग ६, ७ ।
४. तत्र भगवत्कुमारप्रणीतसूत्रानन्तरं तदाज्ञयैत्र श्रीशर्ववर्मणा प्रणीतं सूत्र कथमनर्थकं भवति । परिशिष्ट, पृष्ठ ४६६ ।।
५. अल्वेरूनी का भारत, भाग २, पृष्ठ ४१। ६. द्र०-पृष्ठ ४३७ ।
७, कातन्त्र के प्राख्यातान्त भाग में १६ पाद है । क्या प्राख्यातप्रकरण के चार पाद प्रक्षिप्त हैं ? सम्भव है १९ के स्थान में १५ संख्या प्रमादजन्य हो।
८. यहां अध्याय से पादों का अभिप्राय है । कृदन्त भाग मिलाकर सम्पूर्ण ग्रन्थ में २५ पाद हैं ।