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________________ आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण ६२१ उनका उल्लेख कभी न होता। इससे स्पष्ट है कि कातन्त्र महाभाष्य से प्राचीन है। ___ यदि कातन्त्र व्याकरण का वर्तमान स्वरूप इतना प्राचीन न भी होग, तब भी यह अवश्य मानना होगा कि कातन्त्र का मूल अवश्य प्राचीनतम है। कातन्त्र व्याकरण के दो पाठ-वृद्ध लघु कातन्त्र व्याकरण काशकृत्स्न व्याकरण का संक्षेप है । यह हम पूर्व (पृष्ठ ६१५) लिख चुके हैं । सम्प्रति कातन्त्र व्याकरण का जो पाठ उपलब्ध होता है वह सम्भवतः प्राचीन कातन्त्र व्याकरण का शर्ववर्मा कृत संक्षिप्त लघुरूप है । इस सम्भावना में निम्न हेतु हैं- १० १. धातुपाठ के वृद्ध-लघु पाठ-कातन्त्र व्याकरण के धातुपाठ के जो दो हस्तलेख हमारे पास हैं, उन के अध्ययन से स्पष्ट प्रतीत होता है कि वह काशकृत्स्नीय धातुपाठ का संक्षेप है । वह धातुपाठ हमारे पास श्री पं० रामअवध पाण्डेय द्वारा प्रेषित धातुपाठ की अपेक्षा पर्याप्त भिन्नता रखता है । दोनों पाठों की तुलना से विदित होता है १५ कि हमारे पास पूर्वत: विद्यमान हस्तलेखों का पाठ वृद्धपाठ है और पं० रामप्रवध पाण्डेय द्वारा प्रेषित पाठ लघपाठ है। विशेष द्रष्टव्य 'धातुपाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता (३)' नामक २२ वां अध्याय । . २-वृद्धकातन्त्र-त्रिलोचनदास ने दुर्गवृत्ति पर पजी अथवा पञ्जिका नाम्नी व्याख्या लिखी है। ३।३।२२ सूत्र की पञ्जिका २० गाख्या में वृद्धकातन्त्राः नाम से प्राचीन वृद्धकातन्त्र के अध्येताओं को स्मरण किया है।' __ इस प्रकार कातन्त्रीय धातुपाठ के वृद्ध और लघु दो प्रकार के पाठ उपलब्ध होने से तथा पञ्जिका व्याख्या में स्पष्टतया वृद्धकातन्त्राः का निर्देश होने से स्पष्ट है कि कातन्त्र व्याकरण के २५ वृद्ध और लघु दो पाठ अवश्य थे । वृद्धपाठ के प्रवक्ता का नाम अज्ञात है। लघुकातन्त्र का प्रवक्ता कातन्त्र-व्याकरणोत्पत्तिप्रस्ताव-डा. वेलवाल्कर महोदय ने १. द्र०—कातन्त्रव्याकरण-विमर्श, पृष्ठ २७६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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