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________________ संस्कृत भाषा की प्रवृत्ति, विकास और ह्रास २६ बृहद्वृत्ति' और पाल्यकीति ने स्वोपज्ञ अमोघावृत्ति' में यण-व्यवधान पक्ष का निर्देश किया है। अतः यण-व्यवधान पक्ष में 'दधियत्र मधुवत्र' आदि प्रयोग भी कभी लोक में प्रयुक्त होते थे, यह निर्विवाद है। तैत्तिरीय आदि शाखाओं में इस प्रकार के कुछ प्रयोग उपलब्ध होते हैं। बौधायन गृह्य में 'व्यहे' के स्थान में 'त्रियहे' का प्रयोग मिलता ५ है । कैवल्य उपनिषद् १।१२ में 'स्त्रीयनपानादि विचित्रभौगैः' प्रयोग में यण्व्यवधान देखा जाता है। प्रतीत होता है कालान्तर में लोकभाषा में से यण्व्यवधान वाले प्रयोगों का लोप हो जाने से पाणिनि ने यण्व्यवधान पक्ष का साक्षात् निर्देश नहीं किया, परन्तु 'भूवादयो धातवः" सूत्र में वकार-व्यवधान का प्रयोग करते हुये यण्व्यवधान १० पक्ष को स्वीकार अवश्य किया है। कात्यायन ने यण्व्यवधान वाले प्रयोगों का लोक में प्रायः प्रभाव देख कर तादृश वैदिक प्रयोगों का साधुत्व दर्शाने के लिये 'इयङादिप्रकरणे तन्वादीनां छन्द से बहुलम् वात्तिक बनाया, और उनमें इयङ उवङ की कल्पना की। परन्तु 'भवादयः' पद की निष्पति नहीं हुई। १५ अतः महाभाष्यकार को यहां अन्य क्लिष्ट-कल्पनाएं करनी पड़ी। ___१. केचित्त्ववर्णादिभ्यः परान् यरलवानिच्छन्ति । दधियत्र, तिरियङ, मधुवत्र, भूवादयः । हैम व्याकरण १।२।२१॥ २. शाकटायन व्या० १।१७३॥ लघुवृत्ति—'इको यभिर्व्यवधानमित्येके ।' पृ० २३ । 'इको यभिर्व्यवधानमित्येके । दधियत्र मधुवत्र ।' अमोघावृत्ति २० पृ० १५ । ३. जैमिनि ब्राह्मण १।११२ का पाठ है-'प्राण इति द्वे अक्षरे, अपान इति त्रीणि, व्यान इति त्रीणि, तदष्टौ संपद्यन्ते' । यहां मुद्रित पाठ 'व्यान' अशुद्ध है 'वियान' चाहिये । 'वियान' पाठ होने पर ही तीन अक्षर बनते हैं। ४. त्रियहे पर्यवेतेऽथ । बौ० गृह्य शेष ५॥२॥ पृष्ठ ३६२ । ५. स्त्रियन्नपानादि० पाठान्तर । इसमें इयङ हुआ है । ६. अष्टा० १।३।१॥ ७. महाभाष्य ६।४।७७॥ ८. भूवादीनां वकारोऽयं मङ्गलार्थः प्रयुज्यते । महाभाष्य १॥३॥१॥ अभयनन्दी ने पूर्वोक्त (प० २८,टि०२) संग्रह का वचन उद्धृत करके 'मङ्गलार्थः, ३० के स्थान में 'लक्षणार्थः' पढ़ा है । जैनेन्द्र व्या० महावृत्ति ११२॥१॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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