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________________ संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास ६१४ साईचा घोषा घोषपितरो रती: अनुरे श्रासकाः निनाणे नामा: संता जेरेल्लवाः ५ रुकमण संघोसाहाः श्रायती विसुरजुनीयाः कायती जिह्वामू लिया: पायती पदमानीया श्रायो प्रायो रतमसवारोः १० पूरबो फल्योरया रथोपालरेऊ ३० पदुपदुः विणज्यो नामी। सब्वरूवरणानेतू नेतकरमेयाः रासस लाकोजेतुः लेषोः पवाईडा: दुर्गणसींधीः एती: सोंधीसूत्रता: प्रथमापाटी शुभकरता श्चाघोषा घोषवन्तोऽन्ये श्रनुनासिका ङजणनमाः अन्तस्थाः यरलवाः । ऊष्माणः शषसहाः । प्रः इति विसर्जनीयः । एक इति जिह्वामूलीयः इत्युपध्मानीयः । श्रं इत्यनुस्वारः । पूर्वपरयोरर्थोपलब्ध पदम् । व्यञ्जनमस्वरं परं वर्णं नयेत् । अनतिक्रामयन् विश्लेषयेत् । लोकोपचाराद् ग्रहणसिद्धिः । इति सन्धिसूत्राणि प्रथमः पादः शुभं भूयात् । मारवाड़ में सीधी पाटी के न्यूनाधिक अन्तर से कई पाठ प्रच लित हैं । हमने एक का निर्देश किया । २० उपर्युक्त तुलना से स्पष्ट है कि मारवाड़ की देशी पाठशालाओंों में पढ़ाई जानेवाली पांच सोधी पार्टियां कातन्त्रव्याकरण के पांच सन्धिपाद हैं। इससे यह भी विस्पष्ट है कि कातन्त्र का कौमार नाम पढ़ने का कारण 'कुमाराणामिदम् ' ( बालकों का व्याकरण ) ही है । अग्निपुराण और गरुड़पुराण में किसी व्याकरण का संक्षप उपलब्च होता है ।' वह संक्षेप इनमें कुमार और स्कन्द के नाम से दिया २५ है । कई विद्वान् इनका आधार कातन्त्र व्याकरण मानते हैं, परन्तु यह ठीक नहीं है । उसमें पाणिनीय प्रत्याहारों और संज्ञात्रों का उल्लेख मिलता है | अतः हमारा विचार है कि वह संक्षेप पाणिनीय व्याकरणानुसार है । कलाप के सम्बन्ध में विशिष्ट उल्लेख मत्स्यपुराण की एक दाक्षिणात्य प्रति है । उस में पूर्व प्रोर उत्तर १. अग्निपुराण, अध्याय ३४९ - ३५६; गरुड़पुराण श्राचारकाण्ड अध्याय २०५, २०६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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