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________________ आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन व्याकरण है कि कुमारों = बालकों को व्याकरण का साधारण ज्ञान कराने के लिये प्रारम्भ में यह ग्रन्थ पढ़ाया जाता था । अत एव इसका नाम 'कुमाराणामिदं कौमारम्' हुआ । सारस्वत - क्वचित् सरस्वती के प्रसाद से शर्ववर्मा को इस व्याकरण की प्राप्ति का उल्लेख होने से इसे 'सारस्वत' भी कहते हैं । ५ इसी कारण कातन्त्र विभ्रभावचूर्णि' के लेखक साधु चरित्रसिंह ने आरम्भ में सारस्वतसूत्रयुक्त्या पद का प्रयोग किया है । ' ६१३ मारवाड़ देश में अभी तक देशी पाठशालाओं में बालकों को ५ पाच सिधी पाटियां पढ़ायी जाती हैं । ये पांच पाटियां कातन्त्र व्याकरण के प्रारम्भिक पांच पादों का ही विकृत रूप है । हम दोनों १० की तुलना के लिये प्रथम पाटी और कातन्त्र के प्रथम पाद के सूत्रों का उल्लेख करते हैं— प्रथम सिधी पाटी सिधो वरणा समामुनायाः चत्रुचत्रुदासाः दऊसवारा: दसे समानाः तेषु दुध्या वरणाः नसीसवरणाः पुरवो हंसवा: पारो दीरघाः सरोवरणा बिणज्या नामीः इकार देणी सोंधकराणी: कादी: नीबू बिणज्योनामी: ते विरघा: पंचा पंचा विरघानाऊ प्रथमदुतीयाः संषो कातन्त्र का प्रथम पाद सिद्धो वर्णसमाम्नायः । तत्र चतुर्दशादौ स्वराः । दश समानाः । तेषां द्वौ द्वावन्योऽन्यस्य सवणौं । पूर्वो ह्रस्वः । परो दीर्घः । स्वरोऽवर्णवर्जी नामी । एकारादीनि सन्ध्यक्षराणि । कादीनि व्यञ्जनानि । ते वर्गाः पञ्च पञ्च । वर्गाणां प्रथमद्वितीयाः शषसा १५ २० १. द्र० पूर्व पृष्ठ ६११ की टि० १ । २. सन् १९४४ तक । ३. डा० कन्हैयालाल शर्मा ने 'हाड़ोती बोली और साहित्य' नामक ग्रन्थ में पाठान्तर निर्देश पूर्वक इन पांच पाटियों का पाठ मुद्रित किया है। विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के 'सिन्धिया प्राच्यशोध प्रतिष्ठान में इन पांच पाटियों का एक हस्तलेख है । उस का पाठ पं० जानकीप्रसाद द्विवेद ने अपने 'कातन्त्र - विमर्श' नामक शोध ग्रन्थ में पृष्ठ ५३ - ५४ पर छापा है । ३० ४. नीचे लिखा 'सीधीपाटी' का पाठ हमने सन् १९४२ में एक व्यक्ति से सुन कर संग्रहीत किया था । २५
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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