SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 649
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास कातन्त्र कलापक और कौमार शब्दों का अर्थ कातन्त्र-कातन्त्रवृत्ति-टीकाकार दुर्गसिंह आदि वैयाकरण कातन्त्र शब्द का अर्थ 'लघुतन्त्र' करते हैं। उनके मतानुसार ईषत् =लघु अर्थवाची 'कु' शब्द को 'का' आदेश होता है। वृद्ध-कातन्त्र-कातन्त्र ३।३।२२ की पञ्जीटीका में वृद्धकातन्त्राः' प्रयोग मिलता है। ___ कलापक-'कलाप' शब्द से ह्रस्वार्थ में 'क' प्रत्यय होकर 'कलापक' शब्द बनता है । कातन्त्र व्याकरण काशकृत्स्न तन्त्र का संक्षेप है, यह हम आगे प्रमाणित करेंगे। काशकृत्न तन्त्र का नाम १० 'शब्द-कलाप' है, यह पूर्व लिखा जा चुका है ।' अर्वाचीन वैयाकरण कलाप शब्द से स्वार्थ में 'क' प्रत्यय मानते हैं । वे इसका वास्तविक नाम 'कलाप' समझते हैं। कातन्त्रीय वैयाकरणों में किंवदन्ती है कि महादेव के पुत्र कुमार कार्तिकेय ने सर्व प्रथम इसे मयूर की पूछ पर लिखा था, अत एव इसका नाम कलाप १५ हुआ। कई वैयाकरण 'कलापक' शब्द को स्वतन्त्र मानते है । वे इसकी व्युत्पत्ति निम्न प्रकार दर्शाते हैं। ___ आचार्य हेमचन्द्र अपने 'धातुपारायण में लिखता है- बृहत्तन्त्रात् कलाः [प्रा] पिबतीति' ।' पुनः उणादिवृत्ति में लिखता है-'प्रादिग्रहणात् बृहत्तन्त्रात् कला २० प्रापिबन्तीति कलापकाः शास्त्राणि'। हेमचन्द्र से प्राचीन माणिक्य देव दशपादी उणादि-वृत्ति में लिखता है—'सपूर्वस्यापि पा पाने भौ०, प्राङ्पूर्वः कलाशब्दपूर्वः । बहत्तन्त्रात्, कलाः [पा] पिबतीति कलापकः शास्त्रम'। हेमचन्द्र और दशपादी उणादिवृत्तिकार की व्युत्पत्तियों से इतना स्पष्ट है कि किसी बड़े ग्रन्थ से संक्षेप होने के कारण कातन्त्र का नाम 'कलापक' हुआ है। वह महातन्त्र काशकृत्स्न तन्त्र था। कौमार- वैयाकरणों में किंवदन्ती है कि कुमार कार्तिकेय की आज्ञा से शर्ववर्मा ने इस शास्त्र की रचना की है। हमारा विचार १. देखो - पूर्व पृष्ठ १२५। २. पृष्ठ ६। ३. पृष्ठ १० । ४. ३।५, पृष्ठ १३०। ५. तत्र भगवत्कुमार-प्रणीत-सूत्रानन्तरं तदाज्ञयैव श्रीशर्ववर्मणा प्रणीतं सूत्रं कथमनर्थकं भवति । वृत्तिटीका, परिशिष्ट पृष्ठ ४६६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy