________________
आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण
६११
श्राचार्य मिथ्या लिखेंगे, यह कल्पना करना भी पाप है । अतः इनका अन्वेषण आवश्यक है ।
विक्रम की १७ वीं शताब्दी में विद्यमान कवीन्द्राचार्य के पुस्त - कालय का सूचीपत्र गायकवाड़ संस्कृत सीरीज बड़ौदा से प्रकाशित हुआ है । उसमें निम्नलिखित व्याकरणों का उल्लेख मिलता है -
हेमचन्द्र व्याकरण
व्याकरण
सारस्वत
कालाप
शाकटायन
शाकल्य
ऐन्द्र
चान्द्र
दौर्ग
ब्रह्म
11
19
11
17
11
19
33
99
यम
वायु
वरुण
सौम्य
वैष्णव
रुद्र
कौमार
बालभाषा
शब्द तर्क
11
19
$1
11
11
6
11
39
इनमें शाकल्य और ऐन्द्र ये दो नाम प्राचीन हैं । परन्तु सूचीपत्र १५ निर्दिष्ट ग्रन्थ प्राचीन हैं वा अर्वाचीन, यह प्रज्ञात है ।
अब हम पूर्वनिर्दिष्ट १६ सोलह मुख्य वैयाकरणों का क्रमशः वर्णन करते हैं
१०
कातन्त्रकार ( २००० वि० पू० )
व्याकरण के वाङमय में 'कातन्त्र व्याकरण' का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इसके 'कलापक' और 'कौमार' नामान्तर हैं । साघु चरित्रसिह ने 'कातन्त्र विभ्रभावचूर्णि' के प्रारम्भ में सारस्वतसूत्रयुक्त्या' शब्द का प्रयोग किया है। इस से इस का एक नाम 'सारस्वत' भी ज्ञात होता है ।' अर्वाचीन वैयाकरण कलाप शब्द से भी इसका व्यवहार करते हैं ।' इस व्याकरण में दो भाग हैं। एक- श्राख्यातान्त, दूसरा- कृदन्त । दोनों भाग भिन्न-भिन्न व्यक्तियों की रचनाएं हैं ।
: ५
१. पं० जानकीप्रसाद द्विवेद ने 'सं० प्रा० जैन व्याकरण और कोश की परम्परा' ग्रन्थ में छपे अपने लेख में लिखा है - ' इस में सारस्वत व्याकरण के सूत्रों का प्रयोग किया गया है ' ( पृष्ठ ११० ) । यह चिन्त्य है । वह ग्रन्थ सारस्वत व्याकरण नाम से प्रसिद्ध व्याकरण पर नहीं हैं ।
२. कालापिकास्ततोऽन्यत्रापि पठन्ति । भट्टि जयमङ्गला टीका ३ । ६ ।