________________
सत्रहवां अध्याय - आचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण प्राचार्य पाणिनि के अनन्तर अनेक वैयाकरणों ने व्याकरणशास्त्रों की रचनाएं कीं । इन सब व्याकरणों का उपजीव्य पाणिनीय व्या५ करण है । केवल कातन्त्र एक ऐसा व्याकरण है, जिसका आधार कोई
अन्य प्राचीन व्याकरण है।' पाणिनि से अर्वाचीन समस्त उपलब्ध व्याकरण-ग्रन्थों में केवल लौकिक संस्कृत के शब्दों का अन्वाख्यान है । अर्वाचीन वैयाकरणों में अधोलिखित ग्रन्थकार मुख्य हैं
१-कातन्त्रकार ११-वर्धमान २–चन्द्रगोमी १२-हेमचन्द्र ३-क्षपणक
१३-मलयगिरि ४-देवनन्दी १४-क्रमदीश्वर ५-वामन
१५-सारस्वत-व्याकरणकार ६-पाल्यकोति १६-रामाश्रम सिद्धान्तचन्द्रिकाकार ७-शिवस्वामी १७-वोपदेव ८-भोजदेव १८-पद्मनाभ ६-बुद्धिसागर १६-विनयसागर १०-भद्रेश्वर सूरि
इनके अतिरिक्त द्रुतबोध, शीघ्रबोध, शब्दबोध, हरिनामामृत १. प्रादि व्याकरणों के रचयिता अनेक वैयाकरण हए हैं, परन्त ये सब
अत्यन्त अर्जाचीन हैं । इनके ग्रन्थ भी विशेष महत्त्वपर्ण नहीं हैं, और इन ग्रन्थों का प्रचार भी केवल बंगाल प्रान्त तक ही सीमित है । इसलिये इन बैयाकरणों का वर्णन इस ग्रन्थ में नहीं किया जायगा ।
पं० गुरुपद हालदार ने अपने 'व्याकरण दर्शनेर इतिहास' नामक २५ ग्रन्ध के पृष्ठ ४४८ पर पाणिनि-परवर्ती निम्न वैयाकरणों और उनकी
कृतियों का उल्लेख किया हैं
१. हमारे मत में कातन्त्र का उपजीव्य काशकृत्स्न तन्त्र है।