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पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया - ग्रन्थकार
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'और 'पाणिनीयप्रमाणता' प्रादि ३८ ग्रन्थ संस्कृत में लिखे हैं । धातुकाव्य का वर्णन 'काव्यशास्त्रकार वैयाकरण कवि' के प्रकरण में किया
जायगा ।
पाणिनीय प्रमाणता - इस का वर्णन पूर्व पृष्ठ ४६ तथा १७१ पर हो चुका है । इस लघु ग्रन्थ के परम उपयोगी होने से इसे हमने ५ तृतीय भाग में प्रथम परिशिष्ट में छापा है ।
प्रक्रिया सर्वस्व के टीकाकार
'प्रक्रिया सर्वस्व' के सम्पादक साम्ब शास्त्री ने तीन टीकाकारों का उल्लेख किया । एक टीका वेरल - कालिदास केरल वर्मदेव ने लिखी
है । केरल वर्मदेव का काल सं० १९०१ - १९७१ तक माना जाता है । १०
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दो टीकाकारों का नाम अज्ञात है । ट्रिवेण्ड्रम से प्रकाशित प्रक्रिया - सर्वस्व के प्रथम भाग में 'प्रकाशिका' व्याख्या छपी है ।"
अन्य प्रक्रिया - ग्रन्थ
इसके अतिरिक्त लघुकौमुदी, मध्यकौमुदी आदि अनेक छोटे-मोटे प्रक्रियाग्रन्थ पाणिनीय व्याकरण पर लिखे गये । ये सब अत्यन्त १५ साधारण र अर्वाचीन हैं । अतः इनका उल्लेख इस ग्रन्थ में नहीं किया गया ।
इस अध्याय में ६ प्रसिद्ध प्रक्रियाग्रन्थों के रचयिता और उनके टीकाकारों का वर्णन किया है । इस प्रकार प्रध्याय ५-१६ तक १२ अध्यायों में पाणिनि और उसकी अष्टाध्यायी के लगभग १७५ २० व्याख्याकार वैयाकरणों का संक्षेप से वर्णन किया है ।
अब अगले अध्याय में पाणिनि से अर्वाचीन प्रधान वैयाकरणों का वर्णन किया जायगा ।
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१. द्वितीयभाग की भूमिका, पृष्ठ १ । २. भूमिका, भाग १, पृष्ठ ४ । २५