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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
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प्रकरण यथास्थान सन्निविष्ट हैं। प्रकरणों का विभाग और क्रम सिद्धान्तकौमुदी से भिन्न है । ग्रन्थकार ने भोज के सरस्वतीकण्ठाभरण और उसकी वृत्ति से महती सहायता ली है।
ग्रन्थकार का परिचय-नारायण भट्ट विरचित 'अपाणिनीय ५ प्रमाणता' के सम्पादक ई० बी० रामशर्मा ने लिखा है कि नारा
यण भट्ट केरल देशान्तर्गत 'नावा' क्षेत्र के समीप 'निला' नदी तीरवर्ती 'मेल्युत्तर' ग्राम में उत्पन्न हुआ था। इसके पिता का नाम 'मातृदत्त' था। नारायण ने मीमांसक-मूर्धन्य माधवाचार्य से वेद, पिता से पूर्वमीमांसा, दामोदर से तर्कशास्त्र, और अच्युत से व्याकरणशास्त्र का अध्ययन किया था।
नारायण भट्ट का काल-पण्डित ई० बी० रामशर्मा ने 'अपाणिनीयप्रमाणता' का रचनाकाल सन् १६१८-६१ ई० माना है। प्रक्रियासर्वस्व के सम्पादक साम्बशास्त्री ने नारायण का काल सन् १५६०
१६७६ अर्थात् वि० सं० १६५७-१७३३ तक माना है ।' प्रक्रिया१५ सर्वस्व के टीकाकार केरल वर्मदेव ने लिखा है-'भट्रोजि दीक्षित ने
नारायण से मिलने के लिये केरल की और प्रस्थान किया, परन्तु मार्ग में नारायण की मृत्यु का समाचार सुनकर वापस लौट गया।' यदि यह लेख प्रामाणिक माना जाय, तो नारायण भट्ट का काल विक्रम की १६ वीं शताब्दी मानना होगा । इसकी पुष्टि इस बात से भी होती है कि नारायण ने अपने ग्रन्थ में भट्टोजि के ग्रन्थ से कहीं सहायता नहीं ली। प्रक्रियासर्वस्व के सम्पादक ने लिखा है कि कई लोग पूर्वोक्त घटना का विपरीत वर्णन करते हैं । अर्थात् नारायण भट भट्रोजि से मिलने के लिये केरल से चला, परन्तु मार्ग में भट्रोजि
की मृत्यु सुनकर वापस लौट गया। नारायण का गुरु मोमांसक२५ मूर्धन्य माधवाचार्य यदि सायण का ज्येष्ठ भ्राता हो, तो नारायण
भट्ट का काल विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी मानना होगा। अतः नारायण भट्ट का काल अभी विमर्शाह है।
अन्य ग्रन्थ नारायण भट्ट ने 'क्रियाक्रम, चमत्कारचिन्तामणि, धातुकाव्य, १. अंग्रेजी भूमिका भाग १, पृष्ठ ३ । २. देखो-भूमिका भाग २, पृष्ठ २ में उद्धृत श्लोक ।