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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
___...... शेषवंशावतंसानां श्रीकृष्णाख्यपण्डितानां चिरायाचितयोः पादुकयोः प्रसादादासादितशब्दानुशासनास्तेषु च पारमेश्वरं पदं प्रयातेषु कलिकालवशंवदी भवन्तस्तत्र भवभिल्लासितं प्रक्रिया
प्रकाशमाशयानवबोधनिबन्धनैर्दूषणैः स्वयंनिमितायां मनोरमाया५ माकुल्यमकार्षः। सा च प्रक्रियाप्रकाशकृतां पौत्रैरखिलशास्त्रमहा
वमन्थाचलायमानमानसानामस्मद्गुरुवीरेश्वरपण्डितानां तनयैर्दू - षिता अपि......"
शेष वीरेश्वर के पुत्र और उसके ग्रन्थ का नाम अज्ञात है। उसने प्रौढमनोरमा के खण्डन में जो ग्रन्थ लिखा था, वह सम्प्रति अप्राप्य
२-चक्रपाणिदत्त (सं० १५५०-१६२५ वि०) चक्रपाणिदत्त ने भट्टोजि दीक्षित विरचित प्रौढमनोरमा के खण्डन में 'परमतखण्डनम' नामक एक ग्रन्थ लिखा है। चक्रपाणिदत्तकृत
प्रौढमनोरमा-खण्डन इस समय सम्पूर्ण उपलब्ध नहीं होता। इसका १५ कुछ अंश लाजरस कम्पनी बनारस से प्रकाशित हुआ है । इसके दो
हस्तलेख भण्डारकर प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान पूना के संग्रह में हैं । देखो-व्याकरणविषयक सूचीपत्र सं० १४६, १५० । इसके प्रारम्भ में निम्न श्लोक मिलता है
'दरितरिपुवक्षोऽन्त्रं सचक्रपाणि नरहरि नत्वा ।
विद्वन्मण्डलहृदयं तत् परमतखण्डनं तनुते' । चक्रपाणिदत्त शेष वीरेश्वर का शिष्य है । इसके विषय में हम पूर्व पृष्ठ ५६५ पर लिख चुके हैं । चक्रपाणिदत्तकृत प्रक्रियाकौमुदी की टीका का वर्णन पूर्व पृष्ठ ५९५ पर हो चुका है।
___ चक्रपाणिदत्त के खण्डन का उद्धार भट्टोजि दीक्षित के पौत्र हरि २५ दीक्षित ने प्रौढमनोरमा की शब्दरत्नव्याख्या में किया है।
३–पण्डितराज जगन्नाथ (सं० १६१७-१७३३ वि० ?) पण्डितराज जगन्नाथ ने भट्टोजिदीक्षित कृत प्रौढमनोरमा के खण्डन
१. चौखम्बा सीरीज काशी से सं० १६६१ में प्रकाशित प्रौढमनोरमा भाग ३ के अन्त में मुद्रित मनोरमाखण्डन, पृष्ठ १।