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पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया-ग्रन्थकार ६०३ सिद्धान्तकौमुदी की इन टीकाओं के हस्तलेख तञ्जोर के पुस्तकालय में विद्यमान हैं। देखो-सूचीपत्र भाग १०, ग्रन्थाङ्क ५६६०५६६३, ५६६६ ।
१६. लक्ष्मी नृसिंह -विलास इस टीका का एक हस्तलेख मद्रास राजकीय पुस्तकालय में है। ५ देखो-सूचीपत्र भाग २६, पृष्ठ १०५७५, ग्रन्थाङ्क १६२३४ ।
१७. शिवरामचन्द्र सरस्वती -रत्नाकर १८. इन्द्रदत्तोपाध्याय -फक्किकाप्रकाश १६. सारस्वत व्यूढमिश्र -बालबोध । २०. वल्लभ
-मानसरञ्जनी १० इन टीकाओं का उल्लेख अाफ्रक्ट ने अपने बृहत्सूचीपत्र में किया है। संख्या १७ का शिवरामचन्द्र सरस्वती शिवरामेन्द्र सरस्वती ही है । इसने महाभाष्य की भी सिद्धान्त रत्नाकर नाम्नी एक व्याख्या लिखी है । इसका उल्लेख हम पूर्व पृष्ठ ४४४-४४६ पर कर चुके हैं।
संख्या १८ की इन्द्रदत्तोपाध्याय की टीका का एक हस्तलेख १५ भण्डारकर प्राच्यविद्याशोधप्रतिष्ठान पूना के संग्रह में है । वहां टीका का नाम गूढपक्किकाप्रकाश लिखा है । द्र० सन् १९३८ का व्याकरण विभागीय सूचीपत्र ।
सिद्धान्तकौमुदी के सम्प्रदाय में प्रौढमनोरमा, लघुशब्देन्दुशेखर और बृहच्छब्देन्दुशेखर प्रादि पर अनेक टीका-टिप्पणियां लिखी गई २० हैं। विस्तरभिया हमने उन सबका निर्देश यहां नहीं किया।
प्रौढमनोरमा के खण्डनकर्ता अनेक वैयाकरणों ने भट्टोजि दीक्षित कृत प्रौढमनोरमा के खण्डन में ग्रन्थ लिखे हैं। उनमें से कुछ एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों के रचयिताओं का उल्लेख हम नीचे करते हैं
. २५ १-शेषवीरेश्वर-पुत्र (सं० १५७५ वि० के लगभग) वीरेश्वर अपर नाम रामेश्वर के पुत्र ने 'प्रौढमनोरमा' के खण्डन पर एक ग्रन्थ लिखा था। इसका उल्लेख पण्डितराज जगन्नाथ ने 'प्रौढमनोरमाखण्डन' में किया है । वह लिखता है