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६०२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास के भोसलवंशीय शाहजी, शरभजी, तुक्कोजी नामक तीन राजाओं के मन्त्री विद्वान् सार्वभौम आनन्दराय का अध्वर्यु था।
शाहजो, शरभजी और तुकोजी राजाओं का राज्यकाल सन् १६८७-१७३८ अर्थात् वि० सं० १७४४-१७६३ तक माना जाता है। बालमनोरमा के अन्तिम लेख में तुक्कोजी राजा के नाम का उल्लेख है । इससे प्रतीत होता है कि 'बालमनोरमा' की रचना तुक्कोजी के काल में हई थी। अतः बालमनोरमाकार का काल सं० १७४०१८०० के मध्य मानना चाहिये।
-कृष्णमित्र १० कृष्णमित्र ने सिद्धान्तकौमुदी पर 'रत्नार्णव' नाम्नी व्याख्या
लिखी है। इसका उल्लेख आफेक्ट ने अपने बृहत्सूचीपत्र में किया है । कृष्णमित्र ने शब्दकौस्तुभ की 'भावप्रदीप' नाम्नी टीका लिखी है । इसका वर्णन हम पूर्व पृष्ठ ५३४ पर कर चुके हैं । इसने सांख्य पर
तत्त्वमीमांसा नामक एक निबन्ध भी लिखा है। देखो-हमारे मित्र १५ माननीय श्री पं० उदयवीरजी शास्त्री विरचित 'सांख्यदर्शन का इतिहास' पृष्ठ ३१८ (प्रथम संस्क०)।
१०-तिरुमल द्वादशाहयाजी तिरुमल द्वादशाहयाजी ने कौमुदी की 'सुमनोरमा' टीका लिखी है। तिरुमल के पिता का नाम वेङ्कट है । हम संख्या ५ पर रामः २० कृणविरचित रत्नाकर व्याख्या का उल्लेख कर चुके हैं। रामकृष्ण का
पिता का नाम तिरुमल और पितामह का नाम वेङ्कटाद्रि है यदि राम: कृष्ण का पिता यही तिरुमल यज्वा हो, तो इसका काल संवत् १७०० के लगभग मानना होगा।
सुमनोरमा का एक हस्तलेख तजौर के पुस्तकालय में है। २५ देखो-सूचीपत्र भाग १०, पृष्ठ ४२११, ग्रन्थाङ्क ५६४६ ।
११-तोप्पल दीक्षितकृत -प्रकाश १२-अज्ञातकर्तृक -लघुमनोरमा १३- "
-शब्दसागर १४-" " . -शब्दरसार्णव १५- "
-सुधाञ्जन