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पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया-ग्रन्थकार
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उक्त निर्देश के अनुसार रामकृष्ण .भट्ट का काल सामान्यतया सं० १६६० से १७५० तक होना चाहिये।
६-नागेश भट्ट (सं० १७३०-१८१० वि० के मध्य) नागेश भट्ट ने सिद्धान्तकौमुदी की दो व्याख्याएं लिखी हैं । इनके नाम हैं बृहच्छब्देन्दुशेखर और लघुशब्देन्दुशेखर । लघुशब्देन्दु- ५ शेखर पर अनेक टीकाएं लिखी गई हैं । बृहच्छब्देन्दुशेखर सं० २०१७ (सन् १९६०) में वाराणसेयं संस्कृत विश्वविद्यालय से तीन भागों में छप गया है । शब्देन्दुशेखर की रचना महाभाष्यप्रदीपोद्योत से पूर्व हुई थी।'
नागेश भट्ट के काल आदि का वर्णन हम पूर्व कर चुके हैं । १०
लघुशब्देन्दुशेखर की टोकाएं-लघुशब्देदुशेखर पर अनेक टीका ग्रन्थ लिखे गये। इन में उदयङ्कर भट्ट की ज्योत्स्ना और वैद्यनाथ पायगुण्ड की चिदस्थिमाला प्रसिद्ध एवं उपयोगी हैं।
७-रङ्गनाथ यज्वा (सं० १७४५ वि०) हमने पूर्व पृष्ठ ५७६ टि० १ पर वामनाचार्यसूनु वरदराजकृत १५ क्रतुवैगुण्यप्रायश्चित्त के श्लोक उद्धृत किये हैं। उनसे जाना जाता है कि रङ्गनाथ यज्वा ने सिद्धान्तकौमुदी की 'पूर्णिमा' नाम्नी टोका लिखी थी।
रङ्गनाथ यज्वा के वंश और काल का परिचय हम पूर्व पृष्ठ ५७८-५७६ पर दे चुके हैं।
____-वासुदेव वाजपेयी (सं० १७४०-१८००) वासुदेव वाजपेयीने सिद्धान्तकौमुदी की 'बालमनोरमा'नाम्नी टीका लिखी है । यह सरल होने से छात्रों के लिये वस्तुतः बहुत उपयोगी है। बालमनोरमा के अन्तिम वचन से ज्ञात होता है कि इसके पिता का नाम महादेव वाजपेयी,माता का नाम अन्नपूर्णा, और अग्रज का नाम २५ विश्वेश्वर वाजपेयी था। वासुदेव वाजपेयी ने अपने अग्रज विश्वेश्वर से अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया था। यह चोलं (तौर) देश
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शब्देन्दुशेखरे स्पष्टं निरूपितमस्माभिः । महाभाष्यप्रदीपोद्योत २०११२२ पृष्ठ ३६८, कालम २।। २. द्र०-पूर्व पृष्ठ ४६७-४६६ ।