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अन्य ग्रन्थ - रामानन्द ने संस्कृत तथा हिन्दी में अनेक ग्रन्थ लिखे थे। जिनमें से लगभग ५० ग्रन्थ समग्र तथा खण्डित उपलब्ध हैं । सिद्धान्तकौमुदी की टीका के अतिरिक्त रामानन्दविरचित लिङ्गानुशासन की एक अपूर्ण टीका भी उपलब्ध होती है । टीका पाणिनीय लिङ्गानुशासन पर है।'
५ - रामकृष्ण भट्ट (सं० १७१५ वि०)
रामकृष्ण भट्ट ने सिद्धान्तकौमुदी की 'रत्नाकर' नाम्नी टीका लिखी हैं । इसके पिता का नाम तिरुमल भट्ट, और पितामह का नाम वेङ्कटाद्रि भट्ट था । इसके हस्तलेख तञ्जौर के राजकीय पुस्तकालय और जम्मू के रघुनाथ मन्दिर के पुस्तकालय में विद्यमान हैं। जम्मू १५ के एक हस्तलेख का लेखनकाल सं० १७४४ हैं | देखो सूचीपत्र पृष्ठ ५० ।
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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
रची थी। उसकी रचना संवत् १७१३ वैशाख शुक्ल पक्ष १३ शनिघार को समाप्त हुई थी । दाराशिकोह ने रामानन्द की विद्वत्ता से मुग्ध होकर उन्हें 'विविधविद्याचमत्कारपारङ्गत' की उपाधि से भूषित किया था ।
भण्डारकर प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान पूना के संग्रह में इस ग्रन्थ के चार हस्तलेख हैं । देखो - व्याकरणविषयक सूचीपत्र सं० १७०, १७१, १७२, १७३। सं० १७० के हस्तलेख के अन्त में निम्न पाठ २० मिलता है
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'इति श्रीमद्वेङ्कटाद्रिभट्टात्मज तिरुमलभात्मज रामकृष्ण भट्टकर्तृ के कौमुदी - व्याख्याने सिद्धान्तरत्नाकरे पूर्वार्धम् ।
चन्द्रभूषु (१७१५) वत्सरे कौवेरदिग्भाजि रवौ मधौ सिते । श्रीरामकृष्णः प्रतिपत्तिथो बुधे रत्नाकरं पूर्णमचीकरद्वरम् ॥
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श्रङ्कानां वामतो गतिः नियमानुसार यहां सं० ५१७१ बनता है । यह कब्द आदि किसी संवत् के अनुसार उपपन्न नहीं होता । श्रतः यह उक्त नियम का अपवाद रूप क्रमशः प्रङ्कों की गणना करने पर सं० १७१५ काल बनता है ।
१. रामानन्द के लिये देखो - प्राल इण्डिया ओरिएण्टल कान्फ्रेंस १२ वां अधिवेशन सन् १९४४, भाग ४, पृष्ठ ४७.५८ ।