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________________ पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया-ग्रन्धकार ५६६ व्याख्या लिखी है । ग्रन्थकार ने प्रायः प्रौढमनोरमा का ही संक्षेप किया है । ज्ञानेन्द्र सरस्वती के गुरु का नाम वामनेन्द्र सरस्वती था। नीलकण्ठ वाजपेयी ज्ञानेन्द्र सरस्वती का शिष्य था। नीलकण्ठ ने महाभाष्य की 'भाष्यतत्त्वविवेक' नाम्नी टीका लिखी है। इसका उल्लेख हम पूर्व कर चुके हैं।' काल- हम पूर्व पृष्ठ ४४२ पर लिख चुके हैं कि भट्टोजि दीक्षित और ज्ञानेन्द्र सरस्वती दोनों समकालिक हैं । अतः तत्त्वबोधिनीकार का काल सं० १५५०-१६०० तक रहा होगा। ___ तत्त्वबोधिनी-व्याख्या-गूढार्थदीपिका ज्ञानेन्द्र सरस्वती के शिष्य नीलकण्ठ वाजपेयी ने तत्त्वबोधिनी की 'गूढार्थदीपिका' नाम्नी १० एक व्याख्या लिखी थी। वह स्वीय परिभाषावृत्ति में लिखता है । अस्मद्गुरुचरणकृततत्त्वबोधिनीव्याख्याने गूढार्थदीपिकाख्याने प्रपञ्चितम् । नीलकण्ठ का इतिवृत्त हम पूर्व लिख चुके हैं।' ३-नीलकण्ठ वाजपेयी (सं० १६००-१६७५ वि० के मध्य) नोलकण्ठ वाजपेयी ने सिद्धान्तकौमुदी की भी सुखबोधिनी' १५ नाम्नी व्याख्या लिखी है। वह परिभाषावृत्ति में लिखता हैविस्तरस्तु वैयाकरणसिद्धान्तरहस्याख्यास्मत्कृतसिद्धान्तकौमुदीव्याख्याने अनुसन्धेयः । इससे विदित होता है कि इस टीका एक नाम वैयाकरणसिद्धान्तरहस्य भी है। २० ४-रामानन्द (सं० १६८०-१७२० वि०) रामानन्द ने सिद्धान्तकौमुदी पर 'तत्त्वदीपिका' नाम्नी एक व्याख्या लिखी है । वह इस समय हलन्त स्त्रीलिंग तक मिलती है । . परिचय तथा काल-रामानन्द सरयूपारीण ब्राह्मण था। इसके पूर्वज काशो में आकर बस गये थे। रामानन्द के पिता का नाम २५ मधुकर त्रिपाठी था। ये अपने समय के उत्कृष्ट शैव विद्वान् थे । रामानन्द का दाराशिकोह के साथ विशेष सम्बन्ध था । दाराशिकोह के कहने से रामानन्द ने 'विराडविवरण' नामक एक पुस्तक ___१. द्र०-पूर्व पृष्ठ ४४१। २. परिभाषावृत्ति, पृष्ठ १० । ३. द्र०-पूर्व पृष्ठ ४४१-४४२। ४. परिभाषावृत्ति, पृष्ठ २६ । ३०
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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