________________
पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया-ग्रन्थकार
५६७
और टीका का उल्लेख नहीं किया । अतः सम्भवः है कि इसका काल विक्रम की १६ वीं शताब्दी का मध्यभाग हो। यह जयन्त न्यायमञ्जरीकार जयन्त से भिन्न अर्वाचीन है ।
१०-विद्यानाथ दीक्षित विद्यनाथ ने प्रक्रियाकौमुदी की 'प्रक्रियारञ्जन' नाम्नी टीका ५ लिखी है । प्राफेक्ट ने बृहत्सूचीपत्र में इस टीका का उल्लेख किया
११-वरदराज वरदराज ने प्रक्रियाकौमुदी की 'विवरण' नाम्नी व्याख्या लिखी है। इस व्याख्या का एक हस्तलेख उदयपुर के राजकीय पुस्तकालय १० में विद्यमान है। देखो-सूचीपत्र पृष्ठ ८०, ग्रन्थाङ्क ७९१ । यह वरदराज लघुकौमुदी का रचयिता है वा अन्य, यह अज्ञात है।
१२-काशीनाथ काशीनाथ नामा किसी विद्वान् ने प्रक्रियाकौमुदी' पर 'प्रक्रियासार' नामक ग्रन्थ लिखा है। इसका एक हस्तलेख भण्डारकर प्राच्य- १५ विद्याप्रतिष्ठान पूना के संग्रह में विद्यमान है। देखो-व्याकरण विभागीय सूचीपत्र संख्या ११६ । २४२। १८९५-९८ । इस हस्तलेख के प्रारम्भ में निम्न पाठ है
'श्रीमन्तं सच्चिदानन्दं प्रणम्य परमेश्वरम् । प्रक्रियाकौमुदीसिन्धोः सारः संगृह्यते मया ॥'
__२० अन्त में निम्म लेख है'स्त्रियां सर्वनाम्नो वृत्तिमात्रे पुवदभाव इति टापो निवृत्तिः । इति काशीनाथकृतौ प्रक्रियासारे द्विरुक्तिप्रक्रिया।'
५. भट्टोजि दीक्षित (सं० १५७०-१६५० वि० के मध्य) २
भट्टोजि दीक्षित ने पाणिनीय व्याकरण पर 'सिद्धान्तकौमुदी' नाम्नी प्रयोगक्रमानुसारी व्याख्या लिखी है । इससे पूर्व के रूपावतार, रूपमाला और प्रक्रियाकौमुदी में अष्टाध्यायी के समस्त सूत्रों का सन्निवेश नहीं था। इस न्यूनता को पूर्ण करने के लिये भट्टोजि