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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
६-विश्वकर्मा शास्त्री विश्वकर्मा नामक किसी वैयाकरण ने प्रक्रियाकौमुदी की 'प्रक्रियाव्याकृति' नाम्नी व्याख्या लिखी है। विश्वकर्मा के पिता का
नाम दामोदर विज्ञ, और पितामह का नाम भीमसेन था इसका काल ५ भी अज्ञात है। तजौर के सूचीपत्र में इस टीका का नाम 'प्रक्रियाप्रदीप' लिखा है। देखो-सूचीपत्र भाग १० पृष्ठ ४३०४ ।
७-नृसिंह किसी नृसिंह नामा विद्वान् ने प्रक्रियाकौमुदी की 'व्याख्यान' नाम्नी टीका लिखी है। इसका एक हस्तलेख उदयपुर के राजकीय पुस्तकालय में है । देखो-सूचीपत्र पृष्ठ ८० ।
दूसरा हस्तलेख मद्रास राजकीय हस्तलेख पुस्तकालय में विद्यमान है । देखो- सूचीपत्र भाग २, खण्ड १ सी, पृष्ठ २२६३ ।
नृसिंह नाम के अनेक विद्वान् प्रसिद्ध हैं । यह कौनसा नृसिंह है, यह अज्ञात है।
८-निर्मलदर्पणकार किसी अज्ञातनामा विद्वान् ने प्रक्रियाकौमुदी की 'निर्मलदर्पण' नामक टीका लिखी है । इसका एक हस्तलेख मद्रास राजकीय पुस्तकालय में संगृहीत है। देखो--सूचीपत्र भाग ४, खण्ड १C. पृष्ठ ५५८६, ग्रन्थाङ्क ३७७५ ।।
8-जयन्त जयन्त ने प्रक्रियाकौमुदी की 'तत्त्वचन्द्र' नाम्नी व्याख्या लिखी है। जयन्त के पिता का नाम मधुसूदन था । वह तापती तटवर्ती 'प्रकाशपुरी' का निवासी था ।' इसके ग्रन्थ का हस्तलेख लन्दन
नगरस्थ इण्डिया आफिस पुस्तकालय के संग्रह में विद्यमान है। २५ देखो-सूचीपत्र भाग २, पृष्ठ १७०, ग्रन्थाङ्क ६२५ ।।
जयन्त ने यह व्याख्या शेषकृष्ण-विरचित प्रक्रियाकौमुदी की टीका के आधार पर लिखी गई है।' ग्रन्थकार ने प्रक्रियाकौमुदी की किसी
१. भूपीठे तापतीतटे विजयते तत्र प्रकाशा पुरी, तत्र श्रीमघुसूदनो विरुरुचे विद्वद्विभूषामणिः । तत्पुत्रेण जयन्तकेन विदुषामालोच्य सर्वं मतम्, तत्त्वे १० संकलिते समाप्तिमगमत सन्धिस्थिता व्याकृतिः ॥
२. श्रीकृष्णपण्डितवचोम्बुधिमन्थनोत्थम्, सारं निपीय फणिसम्मतयुक्तिमिष्टम् । अर्थ्यामविस्तरयुतां कुरुते जयन्तः, सत्कौमुदीविवृतिमुत्तमसंमदाय ।