________________
पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया-ग्रन्थकार -
५६५
कविदर्पण-भाग १, पृ० ४३६, ६०७, ७६७ इत्यादि । शाकटायन-भाग १, पृ० ३०३, ३०६ । नरेन्द्राचार्य-भाग १, पृ०८०७ । वोपदेव-बहुत्र।
३-चक्रपाणिदत्त (सं० १५५०-१६२५) चक्रपाणिदत्त ने प्रक्रियाकौमुदी की 'प्रक्रियाप्रदीप' नाम्नी व्याख्या लिखी थी। चक्रपाणिदत्त ने शेषकृष्ण के पुत्र वीरेश्वर से विद्याध्ययन किया था।' चक्रपाणिदत्त ने 'प्रौढमनोरमाखण्डन' नामक एक ग्रन्थ लिखा है । उसका उपलब्ध अंश काशी से प्रकाशित हुआ है। उसके पृष्ठ ४७ में लिखा है
'तस्मादुत्तरत्रानुवृत्त्यर्थं तदित्यस्मत्कृतप्रदीपोक्त एव निष्कर्षों बोध्यः।
पुनः पृष्ठ १२० पर लिखा है-'अन्यत्तु प्रक्रियाप्रदीपादवधेयम्'। 'प्रक्रियाप्रदीप' सम्प्रति उपलब्ध नहीं है। चक्रपाणिदत्त वीरेश्वर का शिष्य है, अतः उसका काल सं० १५५०-१६२५ के मध्य होगा। १५
४-अप्पन नैनार्य हमने पूर्व पृष्ठ ५२६ पर अष्टाध्यायी के वृत्तिकार के प्रसङ्ग • में अप्पन नैनार्यकृत 'प्रक्रियादीपिका' का निर्देश किया है। हमारा विचार है कि वह अष्टाध्यायो की व्याख्या नहीं हैं, अपितु प्रक्रिया- , कौमुदी की व्याख्या है। विशेष हस्तलेख देखने पर ही जाना जा २० सकता है।
५-वारणवनेश वारणवनेश ने प्रक्रियाकौमुदी की 'अमृतसृति' नाम्नी टोका लिखी है। इसका एक हस्तलेख तजौर के राजकीय पुस्तकालय में विद्यमान है । देखो-सूचीपत्र भाग १० ग्रन्थाङ्क ५७५५ । . २५
वारणवनेश का काल अज्ञात है।
१. विरोधिनां तिरोभावभव्यो यद्भारतीभरः । वीरेश्वरं गुरु शेषवंशोत्तंसं भजामि तम् ।। प्रौढमनोरमाखण्डन के प्रारम्भ में । मुद्रितग्रन्थ में 'वटेश्वरं गुरु पाठ है । हमारा पाठ लन्दन के इण्डिया आफिस पुस्तकालय के हस्तलेखानुसार है। देखो-सूचीपत्र भाग २, पृष्ठ ६२, ग्रन्थाङ्क ७२८ ।