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________________ ५९४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास का अशुद्ध नहीं हो सकता। हां यह कल्पना की जा सकती है कि संवत नाम से शकाब्द का उल्लेख कर दिया हो, किन्तु जब रामचन्द्र के प्रपौत्र द्वारा लिखित प्रक्रियाकौमुदी प्रसाद के हस्तलेख के अन्त में संवत् १५८३ के साथ शाके १४४८ का स्पष्ट निर्देश होवे' तो यह कल्पना भी उपपन्न नहीं होती। विट्ठल की टीका अत्यन्त सरल है। लेखनशैली में प्रौढ़ता नहीं है। सम्भव है विट्ठल का यह प्रथम ग्रन्थ हो। विट्ठल के लेख से विदित होता है कि उसके काल तक 'प्रक्रियाकौमुदी' में पर्याप्त प्रक्षेप हो चुका था। अत एव उसने अपनी टीका का नाम 'प्रसाद' रवखा। १० प्रक्रियाप्रसाद में उदधत ग्रन्थ और ग्रन्थकार-विटठल ने प्रक्रियाप्रसाद में अनेक ग्रन्थों और ग्रन्थकारों को उद्धृत किया है। जिनमें से कुछ-एक ये हैं दर्पण कवि कृत पाणिनीयमत-दर्पण-(श्लोकबद्ध)-भाग १, पृष्ठ ८, ३१८, ३४७ इत्यादि । कृष्णाचार्यकृत उपसर्गार्थसंग्रह श्लोक-भाग १, पृ० ३८ । वोपदेवकृत विचारचिन्तामणि (श्लोकबद्ध)-भाग १, पृ० १६७, १७६, २२८, २३६ इत्यादि। काव्यकामधेनु-भाग २, पृ० २७६ । मुग्धबोध -भाग १, पृ० २७६, ३७५, ४३१ इत्यादि । रामव्याकरण-भाग २, पृ० २४४, ३२८ । पदसिन्धुसेतु-(सरस्वतीकण्ठाभरणप्रक्रिया) भाग १, पृ० ३१३ । मुग्धबोधप्रदीप-भाग २, पृष्ठ १०२ । प्रबोधोदयवृत्ति-भाग २, पृष्ठ ५३ । रामकौतुक-(व्याकरणग्रन्थ) भाग १, पृ० ३६० । कारकपरीक्षा-भाग १, पृ० ३८५ । प्रपञ्चप्रदीप-(व्याकरणग्रन्थ) भाग १, पृ० ५९५ । कृष्णाचार्य-भाग १, पृ० ३४ । हेमसूरी-भाग २, पृ० १४६ ।। १. पृ० ५६० टि० १ में उद्धृत हस्तलेख का पाठ । २. तथा च पण्डितंमन्यैः प्रक्षेपैर्मलिनी कृता। भाग, पृष्ठ २ । एतच्च कुर्वे इत्यस्मात् प्रास्थितं लेखकदोषादत्र पठितं ज्ञेयम् । भाग २, पृ० २७६ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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