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पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया ग्रन्थकार
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था, यह हम पूर्व पृष्ठ ५३२, ४८७, टि० १० पर लिख चुके हैं । विट्ठल की टीका का सब से पुराना हस्तलेख सं० १५३६ का है, यह भी हम पूर्व दर्शा चुके हैं । अतः इस टीका की रचना सं० १५३६ से कुछ पूर्व हुई होगी। यदि सं० १५३६ को ही प्रसाद टीका का रचना काल मानें तब भी विट्ठल का काल वि० सं० १५१५–१५६५ तक ५ निश्चित होता है।
इस काल-निर्देश में तीन बाधाएं हैं। एक-मल्लिनाथ कृत न्यासोद्योत का सायण द्वारा धातुवृत्ति में स्मरण करना' । और दूसराप्रक्रियाकौमुदी के सम्पादक के मतानुसार हेमाद्रिकृत रघुवंश की टीका में प्रक्रियाकौमुदी और उसकी टीका प्रसाद का उल्लेख करना । प्रथम १० बाधा को तो दूर किया जा सकता है, क्योंकि न्यासोद्योत्त काव्यटीकाकार मल्लिनाथ विरचित है, इसमें कोई पुष्ट प्रमाण नहीं । इतना ही नहीं, मल्लिनाथ ने किरातार्जुनीय २०१७ की व्याख्या में 'उक्तं च न्यासोद्योते' इतना ही संकेत किया है। यदि न्यासोद्योत उसकी रचना होती, तो वह 'उक्तं चास्माभिन्यासोद्योते' इस प्रकार निर्देश करता । १५ दूसरी बाधा का समाधान हमारी समझ में नहीं आया । हेमाद्रि की मत्यु वि० सं० १३३३ (सन् १२७६) में मानी जाती है । अतः हेमाद्रि का काल सं० १२७५-१३३३ तक माना जाये, तो रामचन्द्र और विट्ठल का काल न्यूनातिन्यून सं० १३००-१३४० तक मानना होगा। उस अवस्था में व्याकरण ग्रन्थकारों की उत्तर परम्परा नहीं २० जुड़ती। उत्तर परम्परा को ध्यान से रखकर हमने जो काल रामचन्द्र और विट्ठल का माना हैं, उसका हेमाद्रि के काल के साथ विरोध आता है। ___ तीसरी बाधा है रामेश्वर (वीरेश्वर) के शिष्य मनोरमाकुचमर्दन के लेखक पण्डित जगन्नाथ का शाहजहां बादशाह का सभापति २५ होना । शाहजहां वि० सं० १६८५ (सन् १६२८) में सिंहासन पर बैठा था। इस के अनुसार जगन्नाथ का जन्म सं० १६५० के लगभग
और रामेश्वर से अध्ययन सं० १६६५ में मानें तब भी रामेश्वर के सं० १५००-१५७५ काल में ६० वर्ष का अन्तर पड़ता है। इस समस्या को सुलझाने में हम असमर्थ हैं । हस्तलेखों के अन्त में ३० लिखित काल किसी एक में अशुद्ध हो सकता है, पूर्व निर्दिष्ट सभी
१. द्र०-पूर्व पृष्ठ ५६८, टि० ४ ।