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५९२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास शिष्य और रामचन्द्र के पुत्र नृसिंह का गुरु था। प्रक्रियाकौमुदीप्रकाश का दूसरा नाम 'प्रक्रियाकौमुदी-वृत्ति' भी है ।
शेष कृष्ण के पुत्र रामेश्वर (वीरेश्वर) के शिष्य विट्ठल की प्रक्रियाकौमुदी प्रसाद के वि० सं० १५३६ के हस्तलेख का पूर्व उल्लेख कर चुके हैं। तदनुसार शेष कृष्ण का काल वि० सं० १४७५-१५३५ तक मानना युक्त होगा। शेष कृष्ण दीर्घायु थे। अतः उन का काल सं० १४७५-१५७५ तक भी हो सकता है। __ शेषकृष्ण पण्डित विरचित यङ लुगन्तशिरोमणि ग्रन्थ का एक हस्तलेख भण्डारकर प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान पूना के संग्रह में विद्यमान है । देखो-व्याकरणविषयक सूचीपत्र सन् १९३८, सं० २३३, ३०७/A १८७५-७६ । इस हस्तलेख में पृष्ठ मात्रा का प्रयोग है। अतः यह हस्तलेख न्यूनानिन्यून ४०० वर्ष वा इस से अधिक पुराना होगा। इस के अन्त का पाठ सूची पत्र में इस प्रकार उद्धृत है
छन्दसीत्यनुवृत्त्या प्रयोगाश्च यथाभिमतं व्यवस्थास्यन्ते इति १५ काशिकाकारसम्मत्या भाषायामपि यङ्लुगस्ति । तेन केचिन्महाकवि
प्रयुक्ता यङ्लुगन्ता: शिष्टप्रयोगामनुसृत्य प्रयोक्तम्या इत्यादि प्रयोगानुसारात् । चान्द्रे यङ्लुक भाषाविषये एवेत्युक्तमिति सर्वमकलङ्कम् ।
महाभाष्यमहापारावारपारीणबुद्धिभिः । परीक्ष्यो ग्राह्यदृष्टया चायं यङ्लुगन्तशिरोमगिः ॥१॥
श्रीभाष्यप्रमुखमहार्णवावगाहात्, लब्धोऽयं मणिरमलो हृदा निषेव्यः । क्षन्तव्यं यदकरवं विदांपुरस्तात्,
प्रागल्भ्यं पितृचरणप्रसादलेशात् ॥२॥ इति शेषकृष्ण पण्डित विरचितो यङ्लुगन्तशिरोमणिः समाप्तः ॥
--विट्ठल (सं० १५२० वि० के लगभग) रामचन्द्र के पौत्र और नृसिंह के पुत्र विट्ठल ने प्रक्रियाकौमुदी को 'प्रसाद' नाम्नी टीका लिखी है। विटल ने शेषकृष्ण के पुत्र रामेश्वर अपर नाम वीरेश्वर ने व्याकरणशास्त्र का अध्ययन किया
प्रा० शो० प्र० पूना, व्याकरण सूचीपत्र सन् १९३८, संख्या ११७, पष्ठ १०४। १. शोध कर्तामों को इस हस्तलेख पर विशेष विचार करना चाहिये ।