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पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया-ग्रन्थकार
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कौमुद्योः तुलनात्मकमध्ययनम्' नामक शोध प्रबन्ध (पृष्ठ ५५) हमारे उक्त निर्देश का खण्डन कर के उस हस्तलेख का शुद्ध लिपिकाल १७१४ दर्शाया है। इस भूल के संशोधन के लिये उनको धन्यवाद । ___पं० महेशदत्त शर्मा ने हमारी भूल का निर्देश करते हुए भी प्रक्रियाकौमुदी के इण्डिया आफिस के सं० १५३६ के हस्तलेख का ५ भट्रोजिदीक्षित के काल निर्देश में कोई उपयोग नहीं किया। सं० १५३६ के हस्तलेख के विद्यमान रहते हुए हमारे द्वारा निर्धारित रामचन्द्र विठ्ठल और प्रक्रियाकौमुदी के वत्तिकार शेष कृष्ण के काल में कोई विशेष अन्तर नहीं पड़ता । क्योंकि शेष कृष्ण रामचन्द्राचार्य का शिष्य था और विट्ठल शेष कृष्ण के पुत्र रामेश्वर १० (वीरेश्वर) का शिष्य था । अतः यदि विट्ठल ने प्रसाद टीका की रचना वि० सं० १५३६ से पूर्व कर ली थी तो उस के पितामह रामचन्द्र का काल वि० सं० १४५०-१५२० तक मानना उचित ही
प्रक्रियाकोमुदी के सम्पादक ने लिखा है कि हेमाद्रि ने अपनी १५ रघुवंश की टीका में प्रक्रियाकौमुदी और उसकी प्रसाद टीका के दो उद्धरण दिये हैं। तदनुसार रामचन्द्र और विट्ठल का काल ईसा को १४ वीं शताब्दी है।
प्रक्रियाकौमुदी के व्याख्याता १-शेषकृष्ण (सं० १४७५ वि० के लगभग) गंगा यमुना के अन्तरालवर्ती पत्रपुञ्ज के राजा कल्याण की प्राज्ञा से नृसिंह के पुत्र शेषकृष्ण ने प्रक्रियाकौमुदी की 'प्रकाश' नाम्नी व्याख्या लिखी। श्रीकृष्ण कृत प्रक्रियाकौमुदी व्याख्या के एक हस्तलेख के अन्त में महाराज वीरवर कारिते लिखा। यह रामचन्द्र का
१. प्र० को० भाग १, भूमिका पृष्ठ ४४, ४५ ।
२. कल्याणल तनद्भवस्य नृपतिः कल्याणमूर्तस्ततः कल्याणीमतिमाकलय्य विषमग्रन्थार्थसंवित्तये । कृष्णं शेषनृसिंहसूरितनयं श्रीप्रक्रियाकौमुदीटीकां कर्तुमसो विशेषविदुषां प्रीत्यै समाजिज्ञपत् ॥ प्र० को० भाग १, भूमिका पुष्ठ ४५। ___३. श्री कृष्णस्य कृता समाप्तिमगमद द्वित्वाश्रय प्रक्रिया । इति महाराज ३० वीरवर कारिते प्रक्रियाकौमुदी विवरणे वीरवरप्रकाशे सुबन्त भागः। भण्डारकर