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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
काल - रामचन्द्र ने अपने ग्रन्थ के निर्माणकाल का उल्लेख नहीं किया । रामचन्द्र के पौत्र विट्ठल ने प्रक्रियाकौमुदी की प्रसाद नाम्नी व्याख्या लिखी है, परन्तु उसने भी ग्रन्थरचना - काल का संकेत नहीं किया । रामचन्द्र के प्रपौत्र अर्थात् विट्ठल के पुत्र के हाथ का लिखा ५ हुया प्रक्रियाकौमुदीप्रसाद का एक हस्तलेख भण्डारकर प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान पूना के पुस्तकालय में विद्यमान है । इसके अन्त में ग्रन्थ लेखनकाल सं० १५८३ लिखा है ।' प्रक्रियाकौमुदीप्रसाद का संवत् १५७६ का एक हस्तलेख विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के संग्रह में है । इस की संख्या ५३२५ है । दूसरा सं० १५६० का एक हस्तलेख १० बड़ोदा के राजकीय पुस्तकालय में वर्तमान है । इसने भी पुराना सं १५३६ का लिखा हुमा प्रक्रियाकौमुदीप्रसाद का एक हस्तलेख लन्दन के इण्डिया ग्राफिस के पुस्तकालय में सुरक्षित है । इसके अन्त का लेख इस प्रकार है
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'सं० १५३६ वर्षे माघवदि एकादशी रवौ श्रीमदानन्द पुरस्थानो१५ त्तमे आभ्यन्तरनगर जातीय पण्डितप्रनन्तसुत पण्डितनारायणादीनां पठनार्थं कुठारी व्यवहितसुतेन विश्वरूपेण लिखितम्'
इससे सुव्यक्त है कि प्रक्रियाकौमुदी की टीका की रचना विट्ठल ने सं० १५३६ से पूर्व अवश्य कर ली थी ।
भूल का निराकरण - हमने इस से पूर्व ( १-२-३ ) संस्करणों में २० भण्डारकर शोधप्रतिष्ठान के सन् १९२५ में प्रकाशित सूचीपत्र* के अनुसार संख्या ३२८ के हस्तलेख का काल वि० सं० १५१४ लिखा था । पं० महेशदत्त शर्मा ने अपने 'काशिकावृत्तिवैयाकरणसिद्धान्त
१. द्र० - व्याकरण विभागीय सूचीपत्र सन् १९३८, संख्या ६५, पृष्ठ ६७ । यह प्रक्रिया के पूर्वार्ध का सुबन्तप्रकरणान्त है । अन्त का लेख है -
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इति स्वस्ति श्री संवत् १५८३ वर्षे शाके १४४८ प्रवर्तमाने भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ भौमदिने नन्दिगिरौ श्री रामचन्द्राचार्यसुत सुस्त्व ? सुतेनाखि । शुभं भवतु कल्याणं भवतु ।
२. देखो - प्र० कौ० के हस्तलेखों का विवरण, पृष्ठ १७ ।
३. इण्डिया अफिस लन्दन के पुस्तकालय का सूचीपत्र भाग २, पृष्ठ ३० १६७, ग्रन्थाङ्क ६१६ ।
४. हा सकता है हमारे द्वारा संवत् के निर्देश में भूल हुई हो ।