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________________ पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया-ग्रन्थकार ५८६ वोपदेव के गुरु धनेश्वर कृत प्रक्रियारत्नमणि ग्रन्थ का उल्लेख पूर्व पृष्ठ ४३४ पर कर चुके हैं। ३. विमल सरस्वती (सं० १४०० वि० से पूर्व) विमल सरस्वती ने पाणिनीय सूत्रों की प्रयोगानुसारी 'रूपमाला' ५ नाम्मी व्याख्या लिखी है । इस ग्रन्थ में समस्त पाणिनीय सूत्र व्याख्यात नहीं हैं। भण्डारकर प्राच्यविद्या शोध प्रतिष्ठान पूना के संग्रह में इसका एक हस्तलेख सं० १५०७ का विद्यमान है । द्र० व्याकरण विभागीय सूचीपत्र, सन् १९३८, संख्या ८०, पृष्ठ ७१, ७२ । रूपमाला का काल सं० १४०० से प्राचीन माना जाता है। १० ४. रामचन्द्र (सं० १४५० वि० के लगभग) रामचन्द्राचार्य ने पाणिनीय व्याकरण पर 'प्रक्रियाकौमुदी' संज्ञक ग्रन्थ रचा है । यह धर्मकीतिविरचित रूपावतार से विस्तृत है। परन्तु इसमें भी अष्टाध्यायी के समस्त सूत्रों का निर्देश नहीं है । पाणिनीय १५ व्याकरणशास्त्र में प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों के लिये इस ग्रन्थ की रचना हुई है । अत: ग्रन्थकर्ता ने सरल ढंग और सरल शब्दों में मध्यम मार्ग का अवलम्बन किया है। इस ग्रन्थ का मुख्य प्रयोजन प्रक्रियाज्ञान कराना है। • परिचय-रामचन्द्राचार्य का वंश शेषवंश कहाता है । व्याकरण- २० ज्ञान के लिये शेषवंश अत्यन्त प्रसिद्ध रहा है। इस वंश के अनेक वैयाकरणों ने पाणिनीय व्याकरण पर प्रौढ़ ग्रन्थ लिखे हैं । रामचन्द्र के पिता का नाम 'कृष्णाचार्य' था। रामचन्द्र के पूत्र 'नसिंह ने धर्मतत्त्वालोक के प्रारम्भ में रामचन्द्र को आठ व्याकरणों का ज्ञाता, और साहित्यरत्नाकर लिखा है।' रामचन्द्र ने अपने पिता कृष्णाचार्य २५ और ताऊ गोपालाचार्य से विद्याध्ययन किया था। रामचन्द्र के ज्येष्ठ भ्राता नसिंह का पुत्र शेष कृष्ण रामचन्द्राचार्य का शिष्य था। रामचन्द्र का वंशवृक्ष हम पूर्व दे चुके हैं ।' १. देखो-इण्डिया प्राफिस लन्दन के संग्रह का सूचीपत्र ग्रन्थाङ्क १५६६ । २. देखो-पूर्व पृष्ठ ४३८ ।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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