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________________ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास - ब्रह्म तुह्म देवेहि अंश उद्धृत करते हैं। उससे पाठक हमारे मन्तव्य को भले प्रकार समझ जायेंगे। लौकिक वैदिक लौकिक वैदिक प्राकृत हन्ति हनति हणइ अप्रगल्भ अपगल्भ अपगब्भ भिनत्ति भेदति भेदइ पत्या पतिना पइणा म्रियते मरति मरइ गवाम् गोनाम् गुन्नम् ददाति दाति दाइ अस्मभ्यम् अस्मे दधाति धाति धाइ। यूयम् युष्मे इच्छति इच्छते इच्छए त्रयाणाम् त्रीणाम् तिण्हम् १० ईष्टे ईशे ईसए देवैः देवेभिः । अमथ्नात् मथीत् मथीम नेतुम् [नेतवै] नेतवे अभूत् भूत भवीन इतरत् इतरं । इतरं लौकिक वैदिक संस्कृत प्राकृत सलोप- स्पृशन्य प्रशन्य स्पृहा पिहा १५ ह को ध- सह सध इह इध ऋ को र- ऋजिष्ठम् रजिष्ठम् ऋजु रजु अनुस्वारसे पूर्व ह्रस्व-युवां युवं देवानां देवानं संस्कृत-भाषा का ह्रास पूर्व लिखा जा चुका है कि संस्कृत-भाषा प्रारम्भ में अतिविस्तृत २० थी। संसार की समस्त विद्याओं के पारिभाषिक तथा सर्वव्यवहारो पयोगी शब्द इसमें वर्तमान थे। कोई भी ऐसा प्रयोग जिसे सम्प्रति छान्दस वा आर्ष माना जाता है इससे बाहर न था । सहस्रों वर्षों तक यह संसार की एकमात्र बोलचाल की भाषा रही । उस अतिविस्तृत मूल-भाषा में देश, काल और परिस्थिति की भिन्नता तथा आर्ष संस्कृति के केन्द्र से दूरता के कारण शनैः-शनैः परिवर्तन होने लगा, २५ उसी परिवर्तन से संसार की समस्त अपभ्रंश भाषानों को उत्पत्ति हुई। यद्यपि इस परिवर्तन को प्रारम्भ हुए सहस्रों वर्ष बीत गये, और उन अपभ्रंश भाषाओं में भी उत्तरोत्तर अधिकाधिक परिवर्तन हो गया, तथापि संस्कृत-भाषा के साथ उनकी तुलना करने पर पार स्परिक प्रकृति विकृति भाव आज भी बहत स्पष्ट प्रतीत होता है। ३० इन अपभ्रंश भाषाओं के वर्तमान स्वरूप की अपेक्षा प्राचीन स्वरूप संस्कृत-भाषा के अधिक निकट था।
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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