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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
ग्रन्थ का लेखक बौद्ध विद्वान् धर्मकीति है । यह न्यायबिन्दु आदि के रचयिता प्रसिद्ध बौद्ध पण्डित धर्मकीर्ति से भिन्न व्यक्ति है। धर्मकीर्ति ने अष्टाध्यायी के प्रत्येक प्रकरणों के उपयोगी सूत्रों का संकलन करके इसकी रचना की है ।
धर्मकीर्ति का काल धर्मकीर्ति ने 'रूपावतार' में ग्रन्थलेखन-काल का निर्देश नहीं किया। अतः इसका निश्चित काल अज्ञात है। धर्मकीति के कालनिर्णय में जो प्रमाण उपलब्ध होते हैं, वे निम्न हैं
१. शरणदेव ने दुर्घटवृत्ति की रचना शकाब्द १०९५ तदनुसार १० वि० सं० ५२३० में की।' शरणदेव ने रूपावतार और धर्मकीर्ति'
दोनों का उल्लेख दुर्घटवृत्ति में किया है । ___२. हेमचन्द्र ने लिङ्गानुशासन के स्वोपज्ञ विवरण में धर्मकीर्ति
और उसके रूपावतार का नामोल्लेखपूर्वक निर्देश किया है। हेमचन्द्र
ने स्वीय पञ्चाङ्ग-व्याकरण की रचना वि० सं० ११६६-११६६ के १५ मध्य की है।
३. अमरटीकासर्वस्व में असकृत् उद्धृत मैत्रेयविरचित धातुप्रदीप के पृष्ठ १३१ में नामनिर्देशपूर्वक 'रूपावतार' का उद्धरण मिलता है। मैत्रेय का काल वि० सं० ११६५ के लगभग है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं । यह धर्मकीर्ति की उत्तर सीमा है।
४. धर्मकीर्ति ने 'रूपावतार' में पदमञ्जरीकार हरदत्त का उल्लेख किया है। हरदत्त का काल सं० १११५ के लगभग है।
यह धर्मकीर्ति की पूर्व सीमा है । अतः 'रूपावतार' का काल इन १. देखो-पूर्व पृष्ठ ५२८ टि० २। २. द्र०—पृष्ठ ७१ ।
३. द्र०-पृष्ठ ३० । २५ ४. वाः वारि रूपावतारे तु धर्मकीर्तिनास्य नपुंसकत्वमुक्तम् । लिङ्गा० स्वोपज्ञविवरण, पृष्ठ ७१, पक्ति १५ ।
५. देखिए-हैम व्याकरण प्रकरण, अ० १७ ।
६. रूपावतारे तु णिलोपे प्रत्ययोत्पत्तेः प्रागेव कृते सत्येकाच्त्वाद् यदाहृत। श्चोचूर्यत इति । देखो-रूपावतार भाग २, पृष्ठ २०६ ।। ३० ७. द्र०-पूर्व पृष्ठ ४२४ । ८. द्र०-पूर्व पृष्ठ ४२१, टि० ४।