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________________ पाणिनीय व्याकरण के प्रक्रिया-ग्रन्थकार ५८७ दोनों के मध्य वि० सं० ११४० के लगभग मानना चाहिये । हरदत्त का काल आनुमानिक है । यदि उसका काल कुछ पूर्व खिंच जाय, तो धर्मकीर्ति का काल भी कुछ पूर्व सरक जायगा। रूपावतारसंज्ञक अन्य ग्रन्थ जम्मू के रघुनाथ मन्दिर के पुस्तकालय के सूचीपत्र पृष्ठ ४५ पर ५ 'रूपावतार' संज्ञक दो पुस्तकों का उल्लेख है । इनका ग्रन्थाङ्क ४५ और ११०६ है । सूचीपत्र में ग्रन्थाङ्क ४५ का कर्ता 'कृष्ण दीक्षित' लिखा है । ग्रन्थाङ्क ११०६ का हस्तलेख हिन्दी-भाषानुवाद सहित है। इस पर सूचीपत्र के सम्पादक स्टाईन ने टिप्पणी लिखो हैं- यह ग्रन्थ सं० ४५ से भिन्न है। विद्वानों को इन हस्तलेखों की तुलना १० करनी चाहिये । रूपावतार के टीकाकार १-शंकरराम शंकरराम ने रूपावतार की 'नीवि' नाम्नी व्याख्या लिखी है। इसके तीन हस्तलेख ट्रिवेण्डम् के राजकीय पुस्तकालय में विद्यमान १५ हैं । देखो-सूचीपत्र भाग २ ग्रन्थाङ्क ६२; भाग ४ ग्रन्थाङ्क ४६ ; भाग ६ ग्रन्याङ्क ३१ । शंकरराम का देश और वृत्त अज्ञात है। किसी शंकर के मत नारायण भट्ट ने अपने 'प्रक्रियासर्वस्व' में बहुधा उद्धत किए हैं।' यदि यह शंकर 'रूपावतार' का टीकाकार २० ही हो, तो इसका काल विक्रम की १७ वीं शती से पूर्व है, इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है । २-धातुप्रत्ययपञ्जिका-टीकाकार भण्डारकर प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान पूना के व्याकरण विभागीय सूचीपत्र सं० ६१, १२० A, १८८०-८१ पर 'धातुप्रत्ययपञ्जिकाटीका २५ नाम्नी रूपावतार व्याख्या का एक हस्तलेख निर्दिष्ट है । ग्रन्थकर्ता का नाम वा काल अज्ञात है। १. प्रक्रियासर्वस्व तद्धित भाग, मद्रास संस्करण, सूत्र संख्या ५६, ६३, १०२०, ११०४॥
SR No.002282
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages770
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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