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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
कई विद्वान् इन ग्रन्थों के रचयिता हरदत्त को पदमञ्जरीकार हरदत्त से भिन्न व्यक्ति मानते हैं। परन्तु इनकी पदमञ्जरी के साथ तुलना करने से इन सब का कर्ता एक व्यक्ति ही प्रतीत होता है ।
पदमजाः पर्यालोचनम् डा. तीर्थराज त्रिपाठी ने पीएच० डी० उपाधि के लिये 'पदमञ्जर्याः पर्यालोचनम्' नाम का एक निबन्ध लिखा है । यह सन् १६८१ में छपकर प्रकाशित हुअा है। उस में हमारी सभी मुख्य स्थापनाएं स्वीकार की हैं।
पदमञ्जरी के व्याख्याता १- रङ्गनाथ यज्वा (सं० १७४५ वि० के लगभग) चोल देश निवासी रंगनाथ यज्वा ने पदमञ्जरी की 'मञ्जरीमकरन्द' नाम्नी टीका लिखी है। इस टीका के कई हस्तलेख मद्रास, अडियार' और तजौर के राजकीय पुस्तकालयों में विद्यमान हैं।
अडियार के सूचीपत्र में इसका नाम 'परिमल' लिखा है। १५ परिचय-रंगनाथ यज्वा ने ग्रन्थ के प्रारम्भ में अपना परिचय इस प्रकार दिया है'यो नारायणदीक्षितस्य नप्ता नल्लादीक्षितसूरिणस्तु पौत्रः । श्रीनारायणदीक्षितेन्द्रपुत्रो व्याख्याम्येष रङ्गनाथयज्वा' । प्रथमाध्याय के अन्त में निम्न पाठ उपलब्ध होता है
'इति श्रीसर्ववेदवेदाङ्गज्ञसर्वक्रत्वग्निचितः [नल्लादीक्षितस्य] प्रोत्रेण नारायणदीक्षिताग्निचिद्वादशाहयाजितनयेन रङ्गनाथदीक्षितेन विरचिते मञ्जरीमकरन्दे प्रथमाध्यायस्य प्रथमः पादः समाप्तः' ।
इन प्राद्यन्त लेखों के अनुसार रङ्गनाथ यज्वा नल्ला दीक्षित का पौत्र, नारायण दीक्षित का पुत्र और नारायण दीक्षित का दोहित्र २५ है। यह कौण्डिन्य गोत्रज था।
रंगनाथ का नाना नारायण दीक्षित नल्ला दीक्षित के भ्राता १. सूचीपत्र भाग ४ खण्ड १C पृष्ठ ५७०३, ग्रन्थाङ्क ३८५१ । २. सूचीपत्र भाग २, पृष्ठ ७२ । ३. सूचीपत्र भाग १०, पृष्ठ ४१४६, ग्रन्थाङ्क ५४६६ ।
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