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काशिका के व्याख्याता
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हमारी मूल-हमने पूर्व संस्करणों (१-२-३) में लिखा था"इसकी पुष्टि "देववातिक पुरुषकार से होती है। उसमें णिचश्च (१।३।७४) सूत्रस्थ एक हरदत्तीय कारिका उद्धृत की है। वह पदमञ्जरी में नहीं मिलती।" यह ठीक नहीं है । पदमञ्जरी के सभी संस्करणों में यह कारिका पठित है। परन्तु मुद्रित संस्करणों में मुद्रण दोष से कारिका का स्वरूप नष्ट हो जाने से हमें यह भ्रान्ति हुई ।' उक्त भूल के समाहित हो जाने पर भी 'दाधाघ्वदाप्' (१।१।२०) में मुद्रित 'भाष्यवार्तिकविरोधस्तु महापदमञ्जर्यामस्माभिः प्रपञ्चितः' पाठ से महापदमञ्जरी ग्रन्थ की सत्ता तो विदित होती ही है।
२. परिभाषा-प्रकरण-पदमञ्जरी भाग २ पृष्ठ ४३७ से जाना १० जाता है कि हरदत्त ने 'परिभाषाप्रकरण' नाम्नी परिभाषावृत्ति लिखी थी।' यह ग्रन्य भी इस समय अप्राप्य है। इसके अतिरिक्त हरदत्त मिश्र के निम्न ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं१. पाश्वलायन गह्य व्याख्या-अनाविला। २. गौतम धर्मसूत्र व्याख्या-मिताक्षरा । ३. आपस्तम्ब गृह्य व्याख्या-अनाकुला। ४. प्रापस्तम्ब धर्मसूत्र व्याख्या-उज्ज्वला। ५. प्रापस्तम्ब गह्य मन्त्र व्याख्या। ६. प्रापस्तम्ब परिभाषा व्याख्या। ७. एकाग्निकाण्ड व्याख्या। ८. श्रुतिसूक्तिमाला।
१. हरदत्तस्तु णिचश्च (१।३।७४) इत्यत्राह–'एष विधिन........ | स्वरितेत्त्वमनार्षम् इति । पृष्ठ १०६, १०७, हमारा संस्करण।
२. हमने 'मेडिकल हाल यन्त्रालय बनारस' में छपे संस्करण का उपयोग किया था। तत्पश्चात् सन् १९६५ में 'प्राच्यभारती प्रकाशन' वाराणसी से प्रकाशित न्यासपदमञ्जरी सहित काशिका के संस्करण में तथा सन् १९८१ में उस्मानिया वि० वि० हैदराबाद की संस्कृत परिषद् द्वारा प्रकाशित पदमञ्जरी में उक्त कारिका का पूर्ववत् ही प्रयुक्त मुद्रण हुआ है। किसी सम्पादक ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया।
३. एतच्चास्माभिः परिभाषाप्रकरणाख्ये ग्रन्थे उपपादितम् ।